प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४२६ वां सार -संक्षेप
ऋषित्व अद्भुत है यह वह स्थिति या भाव है जिसमें कोई व्यक्ति सत्य का अन्वेषक होता है, आत्मानुभूति से यथार्थ को जानता है, तप, ज्ञान, ध्यान और दिव्य दृष्टि से युक्त होता है और लोककल्याण के लिए उस सत्य का संप्रेषण करता है
ऋषित्व केवल ब्राह्मणत्व या तप नहीं,
बल्कि आत्मसाक्षात्कार और विश्व के कल्याण हेतु उसकी अभिव्यक्ति है। जो सत्य को देखे और कहे — वही ऋषि, वही ऋषित्व।
इस ऋषित्व का जो कण, अणु, परमाणु हमारे भीतर सुप्त अवस्था में है उसे इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी जाग्रत करने का नित्य प्रयास करते हैं
ताकि हम भोगों में लिप्त न हों, कंचनी मृग माया हट सके, हम संयमित साधना के महत्त्व को जानें, अपने लक्ष्य राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष के प्रति हम समर्पित रहें
जनक और दशरथ अत्यन्त प्रभावशाली राजा थे एक विरक्त भाव से एक आत्मस्थ भाव से अर्थात् एकांगी अध्यात्म की अनुभूति
आसपास क्या हो रहा है उससे सम्बन्ध न रखना यज्ञ हों न हों
उस समय परिस्थितियां अत्यन्त विषम दिख रही थीं विश्रवा वंश के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे ऐसे समय में भगवान् राम का अवतार होता है
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।
इस विषम समय में भारत में रघुकुल भूषण श्री राम जगे
(और रावण का अन्त होता है)
आ सिन्धु हिमालय फहराया अंबर पर केसरिया निशान ll
भारत महान् भारत महान्...
भारत महान् भारत महान्... की शेष कौन सी पंक्तियां आचार्य जी ने पढ़ीं,आचार्य जी ने आचार्य चतुरसेन शास्त्री की पुस्तक वयं रक्षामः की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें