29.6.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण १४३१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  29 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४३१ वां सार -संक्षेप

मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह अपने भीतर किसी श्रेष्ठ लक्ष्य का संकल्प करे और फिर उसे सिद्धि तक पहुँचाने के लिए समर्पण, अनुशासन और निरंतर अभ्यास के साथ कार्यरत रहे। लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए जब हम बाधाओं से टकराते हैं, तब हमारे धैर्य, साहस और विवेक की परीक्षा होती है। यही संघर्ष का सौंदर्य है — जहाँ हर बाधा, हर विपरीत परिस्थिति हमें और अधिक सक्षम बनाती है।संसार में रहकर भी जो व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति सजग और जागरूक रहता है, वही सच्चे अर्थों में आनन्द की अनुभूति करता है।

संसार की समस्याओं के सामने हमारे मन में निराशा और अशक्तता का भाव न आए यदि यह अकेले संभव न हो तो किसी और का भी साथ लें

सङ्घे शक्तिः कलौ युगे

अर्जुन के भीतर लक्ष्य के प्रति दृढ़ता,साधना और दक्षता तो थी ही वह संसार के महानतम धनुर्धरों में से एक था। किंतु युद्धभूमि में जब अपने ही संबंधी, गुरु और बंधु-बांधव सामने खड़े दिखाई दिए, तो उसका मन संशय और मोह से आच्छादित हो गया।भगवान् श्रीकृष्ण ने विवेक, धर्म और कर्तव्यबोध के माध्यम से उसका संशय दूर किया l लक्ष्य चाहे कितना भी स्पष्ट हो, यदि मन में संशय है तो कर्म रुक जाता है। जब संशय मिटता है, तभी आत्मा स्थिर होता है, और वही क्षण है जब कर्म योग में परिणत होता है। अर्जुन का रूपांतरण इस बात का प्रतीक है कि स्पष्ट लक्ष्य, गुरु का मार्गदर्शन और मन की निर्मलता — इन तीनों से ही सच्चा कर्म संभव है।

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।


स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।।18.73।।


अर्जुन बोले -- हे अच्युत ! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है और स्मृति प्राप्त हो गयी है। मैं सन्देह भ्रम भय कुशंका रहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपके आदेश का पालन करूँगा।

ऐसा अद्भुत है गीता ज्ञान 

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।


तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।18.78।



जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुषधारी अर्जुन हैं, वहाँ ही श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है -- ऐसा मेरा मत है।

जहां इस प्रकार का गुरुत्व और शिष्यत्व होता है वह राष्ट्र कभी पराजित नहीं हो सकता कुछ समय के लिए व्याकुल हो सकता है

कभी विलीन नहीं हो सकता अतः निराशा का भाव कभी न लाएं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसे जुनूनी कहा भैया मोहन जी का उल्लेख क्यों किया श्री मां का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें