बंदउँ संत असज्जन चरना। दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दु:ख दारुन देहीं॥2॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४०८ वां सार -संक्षेप
परमात्मा द्वारा रचा यह संसार बड़ा अद्भुत है
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥
जब कि दुनिया बड़ी घालमेल की है उसमें मनुष्य अपना दिमाग लगाता है वह दिमाग जिसमें अनेक विकार आ जाते हैं
मानव मन इस संसार की उलझनों में फँसकर विकारों (काम, क्रोध, लोभ आदि) से भर जाता है। इसलिए विवेक और सत्संग जरूरी हैं अपनी कला अपनी शक्ति अपने ज्ञान का समाजोन्मुखी दृष्टि से उपयोग करें अपने कर्तव्य की अनुभूति करें अविश्वासी रहते हुए अब भी नहीं चेते तो क्या मिलेगा
तो विश्वास, विवेक आदि की प्राप्ति के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में
हम अपने भीतर स्थित ईश्वर की अनुभूति करें तो हमें लाभ पहुंचेगा दिन भर के सांसारिक प्रपंचों के बाद शयन से पूर्व चिन्तन करें अपनी समीक्षा करें उसे लिख लें अपने इष्ट का स्मरण करें उसके पश्चात् शयन करें अगले दिन का प्रातःकाल आनन्दमय रहेगा
श्रद्धा और विश्वास संसार का आनन्द पक्ष है
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।
परमात्मा में, महापुरुषों में, सनातन धर्म में, अपने देश में और शास्त्रों में प्रत्यक्ष की तरह आदरपूर्वक विश्वास होना 'श्रद्धा' कहलाती है। जब तक परमात्मतत्त्व का अनुभव न हो, तब तक परमात्मा में प्रत्यक्ष से भी बढ़कर विश्वास होना चाहिए, वास्तव में परमात्मा से देश, काल आदि की दूरी नहीं है, केवल मानी हुई दूरी है। दूरी मानने के कारण ही परमात्मा सर्वत्र विद्यमान रहते हुए भी अनुभव में नहीं आ रहे हैं। इसलिए 'परमात्मा अपने में हैं' ऐसा मान लेने का नाम ही श्रद्धा है।
अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष नष्ट हो जाता है, संशयी के लिए न यह लोक है और न ही परलोक
जिसने योग द्वारा कर्मों का संन्यास किया है, ज्ञान द्वारा जिसके संशय नष्ट हो गये हैं, ऐसे आत्मवान् पुरुष को, कर्म नहीं बांधते हैं। वे कर्मफल की इच्छा भी नहीं करते हैं
इसके अतिरिक्त दीप से दीप का जलना क्या है आचार्य जी ने रामाज्ञा प्रश्न की चर्चा क्यों की भैया डा अमित जी भैया डा पंकज जी भैया अरविन्द जी का उल्लेख क्यों हुआ
भैया पवन जी भैया मुकेश जी आचार्य जी आज कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें