प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४१० वां सार -संक्षेप
मच्छर काहि कलंक न लावा। काहि न सोक समीर डोलावा॥
चिंता साँपिनि को नहिं खाया। को जग जाहि न ब्यापी माया॥2॥
डाह ने किसको कलंक नहीं लगाया? शोक रूपी पवन ने किसे नहीं हिला दिया? चिंता रूपी साँपिन ने किसे नहीं खा लिया? जगत् में ऐसा कौन है, जिसे माया न व्यापी हो?
अर्थात् डाह, शोक, चिन्ता,माया सभी को प्रभावित करते हैं
किन्तु भक्तिपथ पर चलने वाले धीरे धीरे शोक चिन्ता आदि से अप्रभावित होने लगते हैं
माया और मनोविकार सब पर छाते हैं किंतु साधना, भक्ति और विवेक से मनुष्य उनसे ऊपर उठ सकता है।
वातावरण पारिवारिक और आनन्दमय रहे यह प्रयास करें आनन्दमय पारिवारिक भाव अनेक व्याधियों का निर्मूलन करता है
यह भारतीय जीवन दर्शन का मूल तत्त्व है जब परिवार में प्रेम, सहयोग और आनन्द होता है, तो वह मन, तन और समाज — तीनों के लिए ओषधि बन जाता है।
मानसिक तनाव, जो अधिकांश रोगों का मूल है, स्नेहपूर्ण पारिवारिक वातावरण से स्वतः कम हो जाता है।
भारतीय जीवन-दर्शन में परिवार केवल सामाजिक इकाई नहीं, बल्कि धार्मिक व सांस्कृतिक साधना का केंद्र है।
वसुधैव कुटुम्बकम् — यही भाव और विस्तार है इस दर्शन का।
हम दूसरे आत्मीय जन में विशेषता देखें और दूसरा हमारे अन्दर विशेषता देखे यही प्रेम का धागा है
यदि विशेषता नहीं देखेंगे तो धागा टूट जाएगा
समय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है हम अपनी भूमिका जानकर समय पर उचित कदम अवश्य उठाएं हम परमात्मा से शक्ति लेकर जीवात्मा बनकर इस संसार का उपयोग उपभोग करने के साथ कल्याण करने के लिए आएं हैं हमारा संपूर्ण राष्ट्र आनन्दमय शक्तिमय संस्कारमय रहे संगठित होकर यह कल्याण करना है
युग भारती का यही उद्देश्य है
सिंधु का व्यर्थ गर्जन यजन बिन्दु का
सूर्य की साधना या सृजन इन्दु का
सिन्धु में इन्दु की भूमिका भाँप कर
फिर समय को सधे पाँव से नाप कर
सिन्धु से बिन्दु का सूर्य से इन्दु का
मन मिलाते रहो जग जगाते रहो ।।४।।
यह था ५२ वीं कविता (अपने दर्द...) का एक अंश
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने इसी पुस्तक के ५३वीं कविता के कुछ अंश सुनाए
किसी भी प्रकार की परिस्थिति से बिना विचलित हुए अपने लक्ष्य का ध्यान रखें आशामय जीवन जीने का प्रयास करें
आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी भैया प्रदीप जी भैया अजय कृष्ण जी भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें