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प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल षष्ठी/सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४३३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल षष्ठी/सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  1 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४३३ वां सार -संक्षेप


सनातन धर्म अद्भुत है क्योंकि यह केवल एक मत नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। इसमें वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृतियाँ, आचार, शास्त्र सब समाहित हैं  इसका दर्शन आत्मा, ब्रह्म, जन्म-मरण, मोक्ष जैसे सूक्ष्म विषयों को स्पर्श करता है।  यह तर्क, विवेक और अनुभव पर आधारित है।सनातन धर्म का प्रत्येक सूत्र हमें आत्मविकास, समाजहित और लोककल्याण की ओर ले जाता है। यह धर्म शरीर के विकारों को दूर करता है मन शान्त करता है जिसके कारण बुद्धि उद्बुद्ध हो जाती है और व्यक्ति सत्कार्य करने में प्रवृत्त हो जाता है

गीता में कहा गया है 

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।


शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।

तुम शास्त्रविधि से नियत किये हुए कर्तव्य-कर्म करो क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तुम्हारा शरीर-निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा।किन्तु आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का सम्यक् आचरण करना चाहिए अद्भुत है हमारी यज्ञमयी संस्कृति


यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः — यज्ञभाव से किया गया कर्म ही बंधनमुक्त करता है। हर कार्य परमात्मा को अर्पित भाव से करें 

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।


भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।

 जो यज्ञशिष्ट अन्न का भोजन करने वाले श्रेष्ठ पुरुष हैं अर्थात् देवयज्ञादि करके उससे बचे हुए अमृत नामक अन्न को भक्षण करना जिनका स्वभाव है वे सब पापों से छूट जाते हैं तथा जो उदरपरायण लोग केवल अपने लिए ही अन्न पकाते हैं वे स्वयं पापी हैं और पाप ही खाते हैं।अन्न महत्त्वपूर्ण है क्योंकि समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति पर्जन्य से। पर्जन्य की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।।

हमारा सनातन धर्म हमें शक्तिसम्पन्न बनाता है आस्था विश्वास  प्रदान करता है समाजोन्मुखी जीवन जीने की प्रेरणा देता है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १३ जुलाई को होने वाली बैठक के विषय में क्या बताया,हथवाल द्वारा जूठे किए उबले उड़द को संन्यासी द्वारा खा लेने वाला क्या प्रसंग है श्री कृष्ण गोपाल जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें