अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ll
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४४३ वां सार -संक्षेप
जब किसी आत्मीय या परिचित को शोक होता है और हम उसके दुःख में सहभागी होते हैं, शोक संवेदना प्रकट करते हैं, साथ खड़े होते हैं तो उसे मानसिक आश्रय मिलता है।
इससे शोक का भार थोड़ा हल्का प्रतीत होता है, क्योंकि दुख बाँटने से घटता है। यह आत्मीयता, करुणा और सामाजिक संवेदना की सांस्कृतिक परंपरा है जो हमारे संबन्धों को गहरा बनाती है और भावनात्मक समर्थन देती है।
भैया गोपाल जी १९७६ बैच के बड़े भाई कल नहीं रहे ऐसे संकट किसी पर भी आ सकते हैं हमारा कर्तव्य है हम भैया गोपाल जी को ढाढ़स बंधाएं उनका शोक कम करें किसी समय जब युगभारती अपने पैर जमाने का प्रयास कर रही थी भैया गोपाल जी बहुत सक्रिय रहे थे विवेकानन्द यात्रा कार्यक्रम में भी उन्होंने बहुत परिश्रम किया था
संसार के धर्म का पालन करते हुए हम अध्यात्म को भी जाग्रत रखें अपनी शक्तियों को प्रयासपूर्वक संगृहीत करेl
अयोध्या कांड में प्रभु राम के अयोध्या-निवास से लेकर उनके वनगमन तक की कथा वर्णित है। अत्यंत ही मार्मिक, भावप्रवण और शिक्षाप्रद कांड
जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥
जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥
हे तात! यदि केवल पिताजी की ही आज्ञा, हो तो माता को (पिता से) बड़ी जानकर वन को मत जाओ, किन्तु यदि पिता-माता दोनों ने वन जाने को कहा हो, तो वन तुम्हारे लिए सैकड़ों अयोध्या के समान है l
यह संवाद दर्शाता है कि माता कौसल्या श्रीराम को वनगमन से रोकने का प्रयास करती हैं, परन्तु श्रीराम अपने कर्तव्य और धर्म के पालन में अडिग रहते हैं।
आचार्य जी ने भैया विजय गर्ग जी भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें