प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 जुलाई 2025 का मार्गदर्शन
१४४४ वां सार -संक्षेप
ऋग्वेद (10.191.4) की एक अद्भुत ऋचा,
"वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः" अर्थात् हम राष्ट्र में जाग्रत पुरोहित बनें, केवल उद्घोष नहीं, एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक संकल्प है। इस ऋचा से हमारा पौराणिक स्वरूप भी परिलक्षित होता है आत्मबल, राष्ट्रप्रेम और जागरूकता के अद्वितीय समन्वय इस शास्त्र-सम्मत स्वर को लक्ष्य बनाना, यह दर्शाता है कि हम अपने राष्ट्र के लिए केवल बाह्य रूप से नहीं,अपितु अंतःकरण से जागरूक, उत्तरदायी और समर्पित बनें। यह जागरण कोई आरोपित भाव नहीं, अपितु भीतर से प्रस्फुटित एक ज्वाला है — स्वप्रेरणा से प्रज्वलित।
राष्ट्र के लिए जाग्रत होने का अर्थ केवल राजनैतिक जागरूकता नहीं, अपितु सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक सहभागिता, और आत्मिक उत्तरदायित्व है। इसका भाव यह है कि हम दूसरों की प्रतीक्षा न करें, न ही किसी सहारे पर निर्भर रहें परिस्थितियों में उलझें नहीं परिस्थितियों से सामञ्जस्य बैठाकर हम स्वयं प्रकाश बनें, केवल भोगवाद में ही न डूबे रहते हुए अपनी विकृतियों को दूर करते हुए अपने भीतर के दीप को प्रज्वलित करें, और वही आलोक राष्ट्र और समाज को भी प्रकाशित करे इसका प्रयास करें यह भी देखें कि शिक्षा,स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सुरक्षा इन चार स्तंभों पर चिन्तन करना जो हमने अपना उद्देश्य बनाया है अपने अन्दर कितना प्रविष्ट है अगली पीढ़ी का भी उचित मार्गदर्शन करें कि वह पराश्रयता से अपने को दूर करे आत्मबोध की ओर उन्मुखता बनाए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पुरुषोत्तम देव कृत भाषावृत्ति की चर्चा क्यों की भाषा शब्द का क्या अर्थ है भैया विवेक चतुर्वेदी जी भैया मोहन जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया १३ की बैठक के लिए क्या परामर्श दिया लेखन क्यों आवश्यक है १५ जून का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें