14.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४४६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  14 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४४६ वां सार -संक्षेप

हमारी संस्था युग-भारती  सनातन धर्म जिसकी  विशेषता यही है कि उसमें प्रत्येक कार्य, व्यवहार और जीवन की छोटी-बड़ी गतिविधियों में परमात्मा और जीवात्मा के संबंध का ध्यान समाहित रहता है। जिसमें कर्म केवल भौतिक प्रयोजन से नहीं, बल्कि ईश्वर-अर्पण की भावना से किया जाता है।  जिससे यही दृष्टिकोण जीवन को आध्यात्मिक बनाता है और धर्म को केवल उपासना तक सीमित नहीं रहने देता, बल्कि जीवन का प्रत्येक क्षण ईश्वर-स्मरण और साधना का अवसर बन जाता है,की उज्ज्वल परंपराओं एवं विचारधारा के संगठित जागरण का प्रयास है। इसका उद्देश्य इन शाश्वत मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाकर समाज में आत्मबोध, सांस्कृतिक चेतना और सुसंस्कारों की पुनर्स्थापना करना है। हम समाज के साथ समरस रहते हुए, मनोरञ्जनपूर्ण आकर्षण से इतर उसे श्रेष्ठ जीवनपथ की ओर प्रेरित करने के लिए निरंतर सक्रिय हैं।


हमने अपना लक्ष्य भी बनाया है 

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

और इस उद्देश्य में स्पष्ट है कि हमें अपने देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचाना है


आचार्य जी कहते हैं कि अध्यात्म शौर्य से प्रमंडित होना चाहिए

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का अर्थ है ऐसा अध्यात्म जो केवल कोमल भावनाओं, त्याग, मौन और वैराग्य तक सीमित नहीं रहता, अपितु उसमें शौर्य, पराक्रम, साहस और कर्तव्यनिष्ठा भी समाहित होती है। यह वह दृष्टि है जो धर्म की रक्षा हेतु आवश्यकता पड़ने पर रणभूमि में उतरने का भी संकल्प लेती है।यह अध्यात्म केवल एकांतवास या निष्क्रिय तपस्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जागरूकता, सक्रियता और तेजस्विता का समन्वय है।

आचार्य जी ने  कल सम्पन्न हुई बैठक की चर्चा करते हुए परामर्श दिया कि २० और २१ सितम्बर के अधिवेशन की तैयारियों में अभी से उत्साहपूर्वक जुट जाएं 

जहां हमारी इकाइयां गठित हैं वे अपने कार्य व्यवहार को प्रतिवर्ष प्रकाशित करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज जी  १९८१ और भैया रामेन्द्र जी १९९६ की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें