जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४४७ वां सार -संक्षेप
संसार में हम रह रहे हैं तो अनन्त समस्याओं का हमें सामना करना पड़ता है किन्तु हमें व्याकुल नहीं होना चाहिए अपनी व्याकुलता को स्वयं शान्त करना ही आत्मसंयम है। जब हमारे ऊपर हनुमान जी जैसे कृपालु, हितैषी,पराक्रमी और आश्रयदाता की छाया हो
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
, तब हमें किसी प्रकार की हीनता या दुर्बलता का भाव नहीं रखना चाहिए।
हम उनके भक्त हैं, और उनका आशीर्वाद हमारी रक्षा, प्रेरणा और संबल है। इसलिए अपने मन को स्थिर रखें, स्वयं को जागरूक करें, और सदा उत्साही, निडर एवं आत्मबल से भरपूर बनें।
भारत के ऋषियों, तपस्वियों आदि की तपस्या, ध्यान और साधना से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न हुई है, वही आज हम राष्ट्रभक्तों को चेतना, बल और ऊर्जस्विता प्रदान कर रही है। यह साधना केवल आत्मकल्याण तक सीमित नहीं रही है
हम जितना इस साधना के प्रतिफल को अपने आचरण, विचार और कर्म में उतारेंगे तथा उसे समाज में बाँटेंगे, उतना ही राष्ट्र का और हमारा मङ्गल होगा।एकांगी जीवन न जिएं
समाज और राष्ट्र के प्रति इसी भाव के कारण हमने अपना लक्ष्य बनाया है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
और इसी कारण हमें अपने कार्यक्रमों को सफल बनाने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए जैसा एक कार्यक्रम २० २१ सितम्बर को होने जा रहा है तो उसे भी प्रभावी और सफल बनाएं ताकि समाज राष्ट्र और धर्म का कल्याण हो
इसके लिए ऐसा विश्वास का वातावरण निर्मित करें कि समाज हमारे ऊपर विश्वास करते हुए हमें धन समर्पित करे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मानस के किस भाग को पढ़ने का परामर्श दिया विराट् पुरुष नाना जी देशमुख का नाम क्यों लिया किस तूफान में पैर टिकाने हैं ५ की जगह ३ वर्ष में क्या करना उचित है जानने के लिए सुनें