प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४५१ वां सार -संक्षेप
हनुमान जी की कृपा से आचार्य जी द्वारा उद्बोधित यह सदाचार संप्रेषण वास्तव में आत्मदर्शन और तत्त्वदर्शन का सजीव उदाहरण है। आचार्य जी सदृश जब कोई साधक आत्मस्थ होकर साधना के द्वार में प्रवेश करता है, तो उसकी वाणी केवल शब्द नहीं रहती, वह एक जीवंत अनुभव बन जाती है जो श्रोताओं के हृदय को स्पर्श करती है।यह वाणी श्रोताओं के मन में आत्मचिंतन और आत्मदर्शन की प्रेरणा उत्पन्न करती है, जो अंततः उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है।तो आइये इसी परिवर्तन की अपेक्षा में प्रवेश करें आत्मजागृति, कर्मप्रेरणा और युगधर्म के पालन का संदेश देती आज की वेला में
चारों ओर अविश्वास और निराशा का अंधकार छाया है ऐसे में अपने भीतर के दीपक को प्रज्वलित करना आवश्यक है ताकि हम अपनी व्याधियां दूर कर सकें
यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ
युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ
( आचार्य जी द्वारा रचित अपने दर्द दुलरा रहा हूं की ४४वीं कविता)
केवल आध्यात्मिक ज्ञान या केवल कर्म दोनों में से कोई एक ही पर्याप्त नहीं है। संसारिक कर्तव्यों को निभाते हुए आत्मज्ञान की ओर बढ़ना ही संपूर्ण जीवन है। संसार की लिप्तता में हमें यह अनुभूति होने लगे कि हम कौन हैं तो हमारा कल्याण निश्चित है
हम हैं
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
अविद्या के साथ विद्या को भी जानें
ईशावस्योपनिषद् में उल्लिखित है
सत्य का मुख चमकीले सुनहरे ढक्कन से ढका है अर्थात् ईश्वर का सत्यस्वरूप माया, अज्ञान या प्रकृति के आवरण से ढका हुआ होता है। हे पोषक सूर्यदेव! सत्य के विधान की उपलब्धि के लिए, साक्षात् दर्शन के लिए आप वह ढक्कन अवश्य हटा दें l चमचमाहट में भ्रमित होने से बचाएं l
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अतुल मिश्र जी १९८३, भैया विवेक चतुर्वेदी जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया संगठन कैसे मजबूत होगा अपनी युगभारती प्रार्थना की क्या विशेषता है जानने के लिए सुनें