प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४५४ वां सार -संक्षेप
आत्मचिन्तन वह पहला द्वार है जो आत्मदर्शन की ओर ले जाता है। जब मनुष्य आत्मस्थ हो जाता है, तब उसका बाह्य जगत के प्रपंचों से मोह छूटता है और भीतर का तेज प्रकट होता है। यही मनुष्यत्व का जागरण है जो व्यक्ति को केवल जीव मात्र से श्रेष्ठ मानव बनाता है।
ऐसे जाग्रत मनुष्य के लिए कोई भी संकट, चाहे वह दैहिक हो, दैविक हो या भौतिक हो उसे विचलित नहीं कर सकता क्योंकि उसका केंद्र आत्मा में स्थित होता है।
जीवन की पूर्णता इसी में है कि हम बारंबार गिरें, पुनः उठें, परन्तु लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें
संसार की चमचमाहट में अपना लक्ष्य न भूलें
और हमारा लक्ष्य है कि हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनें
हमारी बुद्धियां ईश्वर की कृपा से प्रमा प्रज्ञा मेधा आदि पार कर विवेक तक की यात्रा कर सकती हैं अतः इस पर विश्वास करें और कार्य करें
जहां चिन्तन का भाव होता है वहां चर्चा बहुत होती है किन्तु मध्यमस्तरीय व्यक्ति निष्कर्ष तक पहुंचते नहीं हैं और पहुंचते हैं तो उसके लिए प्रयत्न नहीं करते हैं
हम उस स्तर से ऊपर हैं अतः हमें निष्कर्ष तक पहुंचना ही चाहिए
श्रेष्ठ चिन्तक विचारक किसी भी विषम परिस्थिति के आने पर निश्चिन्त नहीं बैठते वे उसके हल में जुट जाते हैं
जैसे इस समय हमारा उपलक्ष्य है कि सितम्बर माह में होने वाला अधिवेशन सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करे तो उस उपलक्ष्य को पाने के लिए हम परिस्थितियों को अनदेखा कर जुट जाएं जिन्होंने शुल्क जमा कर दिया है सक्रियता दिखाते हुए कम से वे दो लोगों का शुल्क और जमा कराएं हम लोग एक दूसरे के संपर्क में रहें और उत्साह का वातावरण निर्मित करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शुभेन्द्र जी भैया प्रदीप जी भैया मोहन जी भैया वीरेन्द्र जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया उपराष्ट्रपति जी का उल्लेख क्यों हुआ
कृष्णानन्द सागर जी ने कौन सा विषय बताया जानने के लिए सुनें