23.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४५५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  23 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४५५ वां सार -संक्षेप


परिस्थितियां  हम सामान्य मनुष्यों को विचलित करती ही हैं। हम उनसे बचना चाहते हैं, किन्तु वह टालने से टलती नहीं। यही संसार का स्वभाव है सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, अनुकूलता-विपरीतता इसका ही भाग हैं।


संसार समर सागर अथवा है इन्द्रजाल 

दुर्धर्ष विमर्श अमर्ष या  कि है काल व्याल....


परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते । स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् ॥ १.३२ ॥ भर्तृहरि ...



किन्तु जब "हम भारतीय हैं" यह बोध भीतर जागता है, तो क्षणभर में सांसारिक हीनताएं, भ्रम, स्वार्थ आदि सब पीछे छूट जाते हैं। यह विचार हमारी आत्मा को उस परम्परा से जोड़ देता है जो केवल इतिहास नहीं, बल्कि अमरत्व की चेतना है।

हमारा अध्यात्म केवल त्याग और वैराग्य तक सीमित नहीं ,यह शौर्य, जागरण और संकल्प का भी पथ है। यह शौर्यप्रमंडित अध्यात्म ही हमें संगठित करता है, प्रेरित करता है और दिशा देता है। इसी बोध से हम बैठकें करते हैं, कार्यक्रम बनाते हैं और उस अमर चेतना को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्त करने का प्रयास करते हैं।यह अमरत्व की उपासना ही हमारे संगठन युग भारती का मूल है। हम युगभारती के सदस्य अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए तत्त्व शक्ति विश्वास बुद्धि विचार कौशल का सदुपयोग करते हुए जो सुप्त हैं उन्हें जाग्रत करने का प्रयास करते हैं और जो जाग्रत हैं उन्हें साथ लेने का प्रयास करते हैं


इसके साथ आचार्य जी ने हमें दृश्य नहीं द्रष्टा बनने का परामर्श क्यों दिया भैया दुर्गेश माधव जी, भैया शुभेन्द्र शेखर जी,भैया दिनेश भदौरिया जी, भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों लिया, कारगिल की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें