प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४५६ वां सार -संक्षेप
सत् का अभ्यास अर्थात् सत्य, धर्म, संयम, करुणा और आत्मिक मूल्य मनुष्य के लिए एक विराट् उपलब्धि है। इसे पाने के लिए उसे सचेतन प्रयास करना पड़ता है। यह अभ्यास श्रम, विवेक और सत्संग के माध्यम से ही संभव होता है। सौभाग्य तब संयुत होता है जब व्यक्ति को ऐसा मार्गदर्शन, वातावरण या प्रेरणा प्राप्त हो जो उसे सत् के पथ पर ले जाए।सौभाग्य से आचार्य जी द्वारा नित्य उद्बोधन से यह हमें प्राप्त है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए
तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
भगवद्गीता का छठा अध्याय "आत्मसंयम योग" ध्यानयोग और आत्मविकास का गहन मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को सच्चे योगी के लक्षण, ध्यान की विधि, मन के संयम, और योगी की महिमा के विषय में उपदेश देते हैं
ध्यान में सबसे अधिक बाधक होता है चांचल्य
अर्जुन को चञ्चल मन को अचञ्चल बनाना अत्यन्त दुष्कर लग रहा है तो उसके प्रश्न पर भगवान् उत्तर देते हैं
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
अभ्यास और वैराग्य से मन नियमों में बंध जाता है कार्य कठिन है किन्तु पुरुष ही कठिन कार्य करता है उसे पुरुषार्थ करने का भाव, विचार और शक्ति परमात्मा ने दी है भ्रम के कारण उसका अभ्यास नहीं हो पाता भ्रम दूर कर उसे पुरुषार्थ करना चाहिए
जीवन की यथार्थता यही है केवल आनंद नहीं केवल पीड़ा नहीं,
बल्कि दोनों का संगम।
इन दोनों अवस्थाओं में समता बनाए रखना ही जीवन का वास्तविक अभ्यास है।
जीवन केवल साँसों की डोर नहीं, वह तो चेतना की पुकार है, जिसमें भाव भी हैं, विचार भी हैं, संघर्ष तो है ही
जीवन वह यज्ञ है जिसमें हम अपने अहं को आहुति देते हैं
ताकि भीतर से कोई "मैं" नहीं, केवल "हम" शेष रहे।
इसलिए जीवन को केवल जीवित रहने की क्रिया न मानें,
बल्कि उसे जिएँ सार्थक रूप में, जागरूक होकर, दूसरों के लिए उपयोगी बनते हुए।इसी कारण हमने अपना लक्ष्य भी बनाया है राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
आचार्य जी द्वारा रचित निम्नांकित पंक्तियों में यही भाव प्रकट हो रहे हैं
केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है
जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए......
यह जीवन रचनाकर्ता की एक अनोखी अमर कहानी
इसमें रोज बिगड़ते बनते हैं दुनिया के राजा रानी
जीवन सुख जीवन ही दुःख है जीवन ही है सोना चांदी
जीवन ही आबाद बस्तियां जीवन ही जग की बरबादी
जीवन तीन अक्षरों का अद्भुत अनुबन्ध हुआ करता है
केवल प्राणों का..
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उपराष्ट्रपति का उल्लेख क्यों किया आज आचार्य जी कहां हैं जानने के लिए सुनें