प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४५७ वां सार -संक्षेप
केवल आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर संसार में हम शान्ति प्राप्त नहीं कर सकते उसके लिए शौर्य का उपासक होना भी हमारे लिए आवश्यक है अर्थात् शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म हमारे लिए नितान्त नितान्त अनिवार्य है यह वह अध्यात्म है जो केवल मौन, ध्यान, वैराग्य और तपस्या तक सीमित न रहकर धर्म की रक्षा, अन्याय के प्रतिकार और कर्तव्य के निर्वहन के लिए शौर्य और पराक्रम को भी आत्मसात् करता है यह अध्यात्म प्रेरित करता है भीतर से और सक्रिय करता है बाहर से जिसमें शान्ति और शक्ति दोनों साथ होते हैं।
अध्यात्म हमारे यहां कभी न कम था न अभी कम है और न आगे भी कम रहेगा किन्तु हमारे इतिहास की जो भयंकर भूलें थीं उसका कारण था कि जितनी मात्रा में हमें शौर्य का उपासक होना चाहिए था उतना रहे नहीं
अतः हमारे लिए शौर्य से परिमंडित अध्यात्म आज भी जरूरी बन गया है जिसे देख कायर पुरुष थर थर कांपे
कभी परशुराम का परशु ऐसा चला कि दुष्टों का विनाश होता गया उन्होंने अनेक असंख्य दुष्टों का नाश किया किन्तु वे अपने आत्मीय जनों में अपने तेजस को प्रविष्ट नहीं करा पाए यह काम तो भगवान् राम ने किया जिन्होंने राष्ट्रभक्त जनसमूह में उसी तेजस के संप्रेषण के लिए अयोध्या से लंका तक की यात्रा की
राम कथा में व्यवहार और तत्त्व दोनों के दर्शन होते हैं हम आत्महीनता से दूर होते हुए इसी रामत्व की अनुभूति करते हुए राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनें
इसके अतिरिक्त
मैं ही शिक्षक बनूं और मैं ही शिष्य बनूं को आचार्य जी ने कैसे व्याख्यायित किया गीता के किन अध्यायों की चर्चा हुई कबीरबीजक का उल्लेख क्यों हुआ सकारात्मकता क्या है जानने के लिए सुनें