28.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  28 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६० वां सार -संक्षेप


आपद् धर्म का सामना जीवन में किसी भी समय, किसी को भी करना पड़ सकता है  व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र किसी को भी। ऐसे समय में धैर्य, विवेक और कर्तव्यनिष्ठा से काम लेना चाहिए। जो सामान्य परिस्थितियों में उचित नहीं लगता, वह आपदा में उचित और आवश्यक हो सकता है।  धर्म का मूल उद्देश्य लोकमंगल और संरक्षण है, न कि जड़ नियमों का पालन।

इसलिए आपद् धर्म का निर्वाह एक प्रकार से मानवता, उत्तरदायित्व  का अभ्यास है। 

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥


कहने का तात्पर्य है कि आपद् धर्म का पालन आवश्यक है, क्योंकि यह जीवन और समाज की रक्षा का आधार बनता है। यही संसार में रहने की उचित शैली भी है l


आचार्य जी परामर्श देते हुए कहते हैं कि हम जिस कर्तव्य का परिपालन हम कर रहे हैं उसे भक्तिभावपूर्वक और अपनी आत्मशक्ति के साथ यथासमय और यथावश्यक रीति के साथ पूर्ण करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी डा मनीष वर्मा जी डा पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें