29.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष   पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  29 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६१ वां सार -संक्षेप

धर्म और कर्म वास्तव में अत्यन्त व्यापक और गूढ़ अवधारणाएँ हैं। ये केवल धार्मिक अनुष्ठानों या बाह्य आचरण तक सीमित नहीं, अपितु जीवन के प्रत्येक क्षण को दिशा देने वाले तत्व हैं। धर्म का आशय है कर्तव्य, मर्यादा, न्याय और सार्वभौमिक सदाचरण, जबकि कर्म जीवन की गति है विचार, व्यवहार और प्रयास।

सनातन परंपरा में धर्म और कर्म को एक-दूसरे से अलग नहीं देखा जाता। धर्म से प्रेरित कर्म ही पुण्य का स्वरूप बनता है  और निष्काम कर्म ही धर्म की पुष्टि करता है। यही दोनों मिलकर जीवन को सार्थक बनाते हैं यही सनातन जीवनदृष्टि के प्राण हैं।हमारे ऋषियों ने अथक परिश्रम करके ये सब हमें प्रस्तुत किया किन्तु भ्रमित होने के कारण वह ऋषित्व हमारे भीतर प्रविष्ट नहीं हो सका  सौभाग्य से इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हम उस ऋषित्व, जो प्रदर्शन का स्वरूप न बनकर दर्शन को स्पष्ट करे, की प्राप्ति कर सकते हैं तो आइये अध्ययन और स्वाध्याय में विश्वासपूर्वक मन लगाने का संकल्प लेते हुए आत्मदर्शन में प्रवृत्त होते हुए ताकि विषम परिस्थितियों में भी सम रह सकें अवगाहन करें आज की वेला में

हमारे यहां परिवारों का परिपोषण अत्यन्त ध्यानपूर्वक किया गया है इसको विस्तार से समझाते हुए आचार्य जी ने जन्म -कुण्डली,कामधेनु तन्त्रम्,

कुण्डलिनी चक्र जो योगमार्ग और हमारी आध्यात्मिक परंपराओं में, शरीर में स्थित सात ऊर्जा केंद्रों को संदर्भित करता है, की चर्चा की

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अग्रज हमें सौभाग्य से प्राप्त हैं  इसका तात्पर्य है कि हमारे जीवन में जो वरिष्ठ, अनुभवी और मार्गदर्शक स्वरूप अग्रज हैं, उनका साथ हमें भाग्यवश मिला है। उनके सान्निध्य से हमें जीवन जीने की कला, मूल्य और प्रेरणा प्राप्त होती है। वे हमारे लिए छाया भी हैं और दीपक भी। अतः हमें उनसे अवश्य लाभान्वित होना चाहिए l

भैया मोहन कृष्ण जी भैया विभास जी कवि अतुल जी की चर्चा क्यों हुई फार्च्यून अस्पताल के कमरा नं ४१० का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें