प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४६२ वां सार -संक्षेप
हम सौभाग्यशाली हीं हैं कि विषम परिस्थितियों से निरन्तर आच्छादित रहने के उपरांत भी आचार्य जी नित्य हमें दिशा और दृष्टि देते हैं
आस्था की जागृति का आह्वान करते हैं ताकि इस अद्भुत संसार में सुशोभित ढंग से हम गतिशील हो सकें, चंचल और प्रमथन स्वभाव के मन का निग्रह कर सकें, क्षात्रतेज को धारण कर सकें और आवश्यक होने पर दुष्टों पर वज्र बनकर टूट पड़ें
जब संसार अस्थिर हो, सहयोग न मिले, संकट गहराए तब भीतर के पौरुष को जगाकर, भगवान श्रीराम का स्मरण करके, हनुमानजी के तेजस्वी साहस को धारण कर आगे बढ़ें इसी का सन्देश देती निम्नांकित पंक्तियां देखिये
आंधियां जोर की चलती हों
उल्काएं रूप बदलती हों
धरती अधैर्य धर हिलती हो
अपनों की सुमति न मिलती हो
तब जय श्रीराम पुकार उठो
अपना पौरुष ललकार उठो
पुरखों का शौर्य निहार उठो
हनुमन्त तेज को धार उठो
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भाईसाहब का, माता जी का नाम क्यों लिया भैया डा मनीष वर्मा जी, डा पंकज जी, डा अमित जी का उल्लेख क्यों हुआ राम -मन्त्र क्या है जानने के लिए सुनें