31.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  31 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६३ वां सार -संक्षेप

एक अत्यन्त विद्वान् शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति के वीडियो,  जिसमें उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों का अत्यन्त रोचक चित्रण प्रस्तुत किया है, को आधार बनाते हुए आचार्य जी कहते हैं कि वर्तमान समय में शिक्षक की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।  हम सनातन धर्मियों को चाहिए कि अपने भीतर शिक्षकत्व का जागरण करें अध्ययन ,स्वाध्याय और लेखन में रत होकर गम्भीर चिन्तन कर मन्थन कर उसके मन्थर को प्रस्तुत करें ताकि नई पीढ़ी भय और भ्रम से मुक्त होकर अपने गौरवशाली अतीत, संस्कृति और मूल्यों को जान सके व उन पर गर्व कर सके। यही शिक्षकत्व युगनिर्माण का आधार बन सकता है और इस पीढ़ी को वात्याचक्रों में फँसकर भ्रमित, भयभीत होने से बचा सकता है उसे उड़ाने से बचा सकता है


आंधियां जोर की चलती हों 

उल्काएं रूप बदलती हों 

धरती अधैर्य धर हिलती हो 

अपनों की सुमति न मिलती हो 

तब जय श्रीराम पुकार उठो 

अपना पौरुष ललकार उठो 

पुरखों का शौर्य निहार उठो 

हनुमन्त तेज को धार उठो


(तब )जय श्रीराम (पुकार उठो) का स्वर जब भाव से निसृत होता है, तो वह केवल एक उद्घोष नहीं रहता वह श्रद्धा, विश्वास और प्रेरणा का प्रतीक बन जाता है। इसका आधार मात्र नाम नहीं, श्रीराम के कृत्य हैं उनका मर्यादा पालन, न्यायप्रियता, त्याग, तप और शौर्य।

श्रीराम शौर्य के प्रतीक हैं क्योंकि उनका पराक्रम धर्म-संरक्षण से जुड़ा है। उन्होंने ताड़का, रावण जैसे अधर्मियों का वध किया, संगठन, नेतृत्व और युद्धनीति का आदर्श प्रस्तुत किया और उनका शौर्य मर्यादा के भीतर रहकर धर्म की रक्षा हेतु प्रकट हुआ। यही संयमित शक्ति उन्हें अद्वितीय बनाती है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राष्ट्रीय अधिवेशन के बारे में क्या परामर्श दिया भैया विनय वर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें