4.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४३६ वां सार -संक्षेप

 गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।


यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।4.23।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  4 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४३६ वां सार -संक्षेप

संस्कार जगाने वाले ये सदाचार संप्रेषण ईश्वर -प्रेरित प्रक्रिया के अन्तर्गत हैं और इनके मूल में  सहज स्वभाव वाले सहज चिन्तन वाले और अपने कार्यों के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित तपस्वी उच्च कोटि के साधक विश्व-रत्न पं दीनदयाल उपाध्याय  का तप और उनके उत्सर्ग से उपजा भावनात्मक किन्तु सशक्त प्रतिकार है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, रामकृष्ण मिशन, आर्य समाज आदि की तरह हमने भी यह संकल्प लिया है कि हम सभी राष्ट्र के कल्याण हेतु जागरूक, उत्तरदायी और सक्रिय बनें। यह कार्य केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि एक समूह-चेतना के साथ होना चाहिए, जिससे हम एक संगठित, विचारशील और राष्ट्रनिष्ठ समाज का निर्माण कर सकें। यही हमारा कर्तव्य है और यही सच्ची राष्ट्रसेवा है।

"वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः" ऋग्वेद (१०.१९१.२)

हम सबका ध्येय है अपने राष्ट्र को चरम वैभव, गौरव और समृद्धि तक पहुँचाना,  

नैतिकता, संस्कृति, विज्ञान, शक्ति और सेवा के माध्यम से भले ही वह गिलहरी-प्रयास हो  

(जब वानर सेना समुद्र पर पुल बना रही थी, तब एक गिलहरी भी अपने शरीर को जल में भिगोकर रेत में लोटती और पुल पर जाकर रेत झाड़ती। वानरों ने उसे तिरस्कारपूर्वक हटाया, लेकिन श्रीराम ने गिलहरी के प्रयास को सराहा और उसके पीठ पर स्नेह से हाथ फेरकर तीन रेखाएँ बना दीं, जो आज भी गिलहरी की पीठ पर देखी जा सकती हैं।)

 कोई भी प्रयास छोटा नहीं होता; भगवान सबके योगदान को स्वीकार करते हैं।

इसके अतिरिक्त

बूजी ने भूमि पर शयन क्यों किया, श्रद्धेय गोखले जी का उल्लेख क्यों हुआ, किसने कुछ क्षणों के लिए अपनी आंखें बन्द कर कहा मुझे यह विद्यालय नहीं लगता..., एक जगदीश जी  क्या देखरेख करते थे, भैया मनीष जी की चर्चा क्यों हुई, ६ जुलाई का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें