आओ हम जलें आओ हम चलें...
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४३७ वां सार -संक्षेप
साधनापूर्वक इन सदाचार संप्रेषणों को सुनना केवल शाब्दिक अनुभव नहीं होता, यह आत्मा को जाग्रत करने वाला माध्यम है। जब हम नियमित रूप से इन विचारों का श्रवण करते हैं, तो हमारे भीतर छिपे हुए सद्गुण धीरे-धीरे उभरने लगते हैं। यह हमें हमारी मूल भारतीय संस्कृति, उसके आदर्शों और जीवन मूल्यों से संयुत करता है।
इन संप्रेषणों से हम केवल स्वयं को नहीं, अपितु अपने परिवार और समाज को भी दिशा देने में समर्थ होते हैं। त्याग, सेवा, समर्पण जैसे गुण जीवन में स्थिरता लाते हैं, तो वहीं दान, पुण्य, साधना और विराग हमें जीवन के उच्चतर उद्देश्य की ओर प्रेरित करते हैं।
यह प्रक्रिया हमारे भीतर चल रहे विकारों — जैसे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, अहंकार — को धीरे-धीरे क्षीण करती है और सुपंथ अर्थात् धर्म, संयम और विवेक के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह प्रक्रिया हमें अपने साहित्य की ओर उन्मुख करती है
अंततः हम न केवल आत्मविकास करते हैं, बल्कि यह संकल्प भी लेते हैं कि जीवन जो एक कथा है (और जहां कथा है वहां व्यथा अवश्य होती है) में कुछ ऐसा करें जिससे हमारा अस्तित्व दिशा-दिशा को आलोकित कर सके, समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके और राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचा सके यही इन विविध विषयों को समेटकर चलने वाले सदाचार संप्रेषणों का गूढ़ और महान् उद्देश्य है
विशेष तथ्य यह है कि ये सदाचार संप्रेषण एक लम्बी दूरी तय कर चुके हैं
इसके अतिरिक्त गंगा -भाव क्या है भैया श्री शीलेन्द्र जी के पिता श्री रामकिशोर जी का उल्लेख क्यों हुआ भैया विभास जी भैया पुनीत जी भैया प्रदीप जी भैया अजय कृष्ण जी भैया नीरज जी भैया मोहन जी का नाम क्यों आया कौशल विकास के एक केंद्र की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें