प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४३८ वां सार -संक्षेप
हम सृजन के सारथी हैं
सृजन का सारथीत्व वास्तव में एक दायित्व है, यह केवल कुछ नया रचने का कार्य नहीं, अपितु समाज, संस्कृति और चेतना को उचित दिशा देने का प्रयत्न भी है। यह समस्याओं का समाधान भी निकालता है हमारा मार्ग निर्माण का है, संवर्धन का है,विध्वंस, आलोचना या अराजकता हमारा मार्ग नहीं। हम संयम, विवेक और श्रम से प्रेरित होकर सकारात्मक परिवर्तन के वाहक बनते हैं।
सृजनशील व्यक्ति समाज के लिए एक प्रकाश -स्तम्भ होता है। उसकी लेखनी, उसकी वाणी, उसके आचरण आदि में दिशा और दृष्टि होती है। युगभारती हम सृजनशील व्यक्तियों का एक संगठन है और जब संगठन एक ही लक्ष्य, विचार और भावना में संगठित होकर चलता है, तब सामूहिक शक्ति का निर्माण होता है। अतः
"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।"
— ऋग्वेद 10.191.2
एक साथ चलो, एक साथ बोलो, तुम्हारे मन एक साथ जानने वाले हों।
इसी सामूहिक शक्ति के निर्माण के लिए हम बार बार प्रयास करते हैं बैठकें करते हैं कार्यक्रम करते हैं जैसा एक विशिष्ट कार्यक्रम २० और २१ सितम्बर को ओरछा में होने जा रहा है जिसके लिए एक बार १३ जुलाई को हम लोग गम्भीर चिन्तन हेतु ओरछा में ही एक बैठक करने जा रहे हैं
लक्ष्य तक पहुँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा
लक्ष्य है अति दूर दुर्गम मार्ग भी हम जानते हैं,
किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं,
जब प्रगति का नाम जीवन, यह अकाल विराम कैसा ।। 1।।
और हमारा लक्ष्य है
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य श्री गणेश शङ्कर जी का उल्लेख क्यों किया
मूर्तिपूजा कितनी करनी है आदि जानने के लिए सुनें