8.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४४० वां सार -संक्षेप

 ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप।


कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः।।18.41।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  8 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४४० वां सार -संक्षेप

आइये सांसारिक समस्याओं से अपने को विरक्त करते हुए संसार के घने आवरण को विदीर्ण करते हुए प्रवेश करें आज की वेला में


सनातन धर्म में भौतिक उन्नति और आध्यात्मिक कल्याण—दोनों को समान रूप से महत्त्व दिया गया है। जीवन निर्वाह के लिए जीविका आवश्यक है, किंतु जीवन का लक्ष्य केवल अर्जन नहीं, अपितु आत्मोन्नति, सेवा और धर्माचरण भी है। इसलिए संसार में रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आत्मचिंतन, भक्ति और संस्कारयुक्त जीवन जीना ही सनातन दृष्टि है। 


इस मार्ग पर चलने से हमारे भीतर विवेक जाग्रत होता है और हम केवल पथिक नहीं रहते, अपितु पथप्रदर्शक भी बन जाते हैं—अपने लिए  और समाज के लिए भी।इस विवेक के आधार पर किसी भी कार्य को करने के पश्चात् यदि उसका परिणाम  प्रशंसात्मक हो जाए तो यह आनन्द प्रदान करता है


वर्तमान में यह चर्चा हो रही है कि क्या केवल ब्राह्मण ही कथा कह सकते हैं और शूद्र नहीं।


हाल ही में उत्तर प्रदेश के इटावा में एक गैर-ब्राह्मण कथावाचक द्वारा भागवत कथा कहने पर विवाद हुआ। कुछ लोगों ने इसे परंपरा के विरुद्ध बताया, जबकि अन्य ने इसे सामाजिक समरसता के दृष्टिकोण से उचित ठहराया। धर्मशास्त्रों में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि केवल ब्राह्मण ही कथा कह सकते हैं। यह विवाद सामाजिक पूर्वाग्रह और परंपरागत सोच का परिणाम है, न कि धर्मशास्त्रों का 

 इस विषय पर सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों और ऐतिहासिक दृष्टांतों के आधार पर विचार करना आवश्यक है।


चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।


तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।


श्रीमद्भगवद्गीता (4.13) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

चार वर्णों की सृष्टि मैंने गुण और कर्म के आधार पर की है। यह स्पष्ट करता है कि वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म नहीं, बल्कि व्यक्ति के गुण और कर्म हैं।


ऋषि विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय थे, किंतु तपस्या और ज्ञान के बल पर ब्राह्मणत्व प्राप्त किया। इसी प्रकार, वाल्मीकि जी का प्रारंभिक जीवन भिन्न था, परंतु उन्होंने रामायण की रचना की और महान् ऋषि कहलाए।

 जो भी श्रद्धा, ज्ञान और भक्ति के साथ कथा कहता है, वह धर्म का प्रचारक है। हमें चाहिए कि हम सामाजिक पूर्वाग्रहों को त्यागकर धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन करें और सभी को समान सम्मान दें।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गीता के १८ वें अध्याय के किन छंदों को समझने का परामर्श दिया श्री श्याम बाबू गुप्त जी का उल्लेख क्यों हुआ भैया पुनीत जी की क्यों चर्चा हुई  हम विराट् दर्शन अपने बच्चों को कैसे कराएं  वह बात कहां से लाओगे किसने कहा जानने के लिए सुनें