..तब महादेव को याद करो,
क्षणभर भी मत बरबाद करो,
निज शक्ति शौर्य के साथ वरो,
उत्थित समाधि-स्वर बन विचरो l
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४६४ वां सार -संक्षेप
हम सनातन धर्म के संवेदनशील अनुयायियों के अंतःकरण में स्थित जो हवनकुण्ड है, यदि उसमें शुभ और शुद्ध विचारों की आहुति दी जाए, तो आंतरिक तथा बाह्य वातावरण निर्मल और सकारात्मक बनता है।
तो आइये इन्हीं शुद्ध शुभ पावन पुनीत विचारों की प्राप्ति के लिए, आत्मविश्वासमय वातावरण की निर्मिति के लिए प्रवेश करें आज की वेला में जो मानसिक क्लेश सांसारिक क्लेश आदि विकारों के समाधान का माध्यम भी है
आचार्य जी जो प्रतिकूल परिस्थितियों से आवृत होने पर भी
नित्य हमें उद्बोधित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
आचार्य जी कहते हैं
अपनी दिशा-दृष्टि सदैव सम्यक् और स्पष्ट रखें ताकि जीवन की गति लक्ष्य की ओर हो। साथ ही, शरीर स्वस्थ और पुष्ट रखें जिससे हम कर्तव्य पालन और साधना में समर्थ बन सकें।
जब विचार और दृष्टिकोण सही होते हैं, तब निर्णय भी सार्थक होते हैं। और जब शरीर सशक्त होता है, तब वे निर्णय कर्मरूप में फलीभूत होते हैं। अतः मानसिक स्पष्टता और शारीरिक सुदृढ़ता दोनों का संतुलन ही जीवन की पूर्णता है। सज्जनों का संगठन जैसे हमारा युगभारती नामक कलियुग की आवश्यकता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भर्तृहरि का नाम क्यों लिया भैया राघवेन्द्र जी भैया वीरेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें