प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४७४ वां सार -संक्षेप
ग्राम :सरौंहां
जैसा कि हम जानते हैं अगले माह ओरछा में दीनदयाल विद्यालय के पूर्व छात्रों द्वारा संचालित युगभारती संस्था का राष्ट्रीय अधिवेशन होने जा रहा है इस प्रकार के आयोजनों का उद्देश्य यही है कि ये समाज के हित के लिए हों समाज में जो लोग निराश और हताश हो चुके हैं, उन्हें आशा की किरण दिखाई दे। वे अनुभव करें कि आज भी ऐसे भले लोग हैं, जो मात्र दिखावा नहीं करते, बल्कि जिनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण और समाजोन्मुखी है।
हमारा लक्ष्य भी है
राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
समाज के उन लोगों को यह चमत्कार लगे उनके मन में प्रश्न उठे कि ऐसे व्यक्तित्व किन महान् प्रेरणा-स्रोतों से अनुप्रेरित हैं और यह जिज्ञासा जागे कि अन्य विद्यालय तथा शैक्षिक संस्थाएँ इस प्रकार के चरित्रवान्, राष्ट्रभक्त और समाजोपयोगी व्यक्तित्वों के निर्माण में सफल नहीं हो पा रहीं तो उस विद्यालय में ऐसा क्या है इसका अर्थ है दीनदयाल विद्यालय विशेष है युग भारती संस्था विशेष है
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपनी संतानों को भी संस्कारित करें हम इसकी गम्भीरता को समझें उन पर हम ध्यान दें
हमारे यहां पहले बच्चों को बहुत अच्छी प्रकार से संस्कारित किया जाता था
मानस में
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥
ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। रघुनाथ (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं।
आचार्य जी ने बताया
यज्ञोपवीत को त्रिगुणात्मक (सत्त्व, रज, तम) और त्रि-ऋणात्मक (देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण) कहा जाता है क्योंकि यह हमें जीवन के तीनों गुणों को संतुलित रखने की प्रेरणा देता है तथा यह भी स्मरण कराता है कि हम तीन प्रकार के ऋणों से बंधे हैं।
और परामर्श दिया कि उस कार्यक्रम के स्वरूप की रूपरेखा बनाएं
भैया प्रदीप जी भैया अजय शंकर जी का उल्लेख क्यों हुआ जर्मनी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें