रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४७५ वां सार -संक्षेप
ग्राम :सरौंहां
"शौर्य-प्रमंडित अध्यात्म" का चिंतन, जिसमें अध्यात्म को केवल आत्मविकास तक सीमित न रखकर उसे समाज के कल्याण के लिए सक्रिय योगदान देने का माध्यम माना गया है, भारतीय परंपरा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप है।
"शौर्य-प्रमंडित अध्यात्म" व्यक्ति को आत्मिक गहराई और सामाजिक उत्तरदायित्व दोनों से संयुत करता है, जिससे वह एक संतुलित और प्रभावशाली जीवन जीता है। आचार्य जी प्रायः इसकी प्रेरणा देते हैं, किन्तु हमें प्रेरणा के परिणाम के बारे में भी विचार करना चाहिए। हमें स्वयं इस पर विश्वास करते हुए एक संकल्प के साथ अपने परिवेश को भी इस दिशा में जाग्रत करने का प्रयास करना चाहिए, हम एक ज्वाला के समान समाज में प्रकाशवान् बने रहें।
तुलसीदास जी के समय अत्यन्त विषम परिस्थितियां थीं दुष्ट अकबर का शासन था
तुलसीदास ने अकबर के दरबार में सम्मिलित होने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि वे केवल भगवान राम के भक्त हैं और किसी सांसारिक सत्ता के अधीन नहीं हैं
संतन को कहा सीकरी काम॥
आवत जात पन्हैयाँ टूटीं, बिसरि गयौ हरि-नाम॥ (कुम्भन दास)
कुंभनदास, तुलसीदास आदि ने सांसारिक आकर्षणों को त्यागकर ईश्वर भक्ति को सर्वोपरि माना। उनका यह दृष्टिकोण आज भी संतों और भक्तों के लिए प्रेरणास्रोत है।
जब तुलसीदास जी ने अकबर के सामने झुकने से इनकार कर दिया तो अकबर ने क्रोधित होकर उन्हें फतेहपुर सीकरी किले की जेल में डाल दिया था।
तब तुलसीदासजी ने वहीं हनुमान चालीसा लिखी और उसका निरंतर पाठ किया। कहा जाता है कि हनुमान चालीसा के कई बार पाठ के बाद अकबर के महल परिसर और शहर में अचानक बंदरों ने हमला कर दिया
हमें इन कथाओं पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि हमारी शिक्षा में दोष व्याप्त रहे जिन्हें हमने अपना समझा उन्हीं लोगों ने शिक्षा को दूषित किया
अब समय है कि हम सनातनधर्मी विश्वास को लेकर जागने वाले राष्ट्रभक्त अपनों को पहचानें संघर्ष के लिए सन्नद्ध रहें
और इसके लिए संगठन महत्त्वपूर्ण है
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥18॥
भगवान् राम ने उपेक्षितों को गले से लगाया संगठन का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया और फिर शक्तिशाली रावण को परास्त किया
विघटन टूटन देश के लिए हानिकारक है उससे बचें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हजारीप्रसाद का उल्लेख क्यों किया
अश्विनी उपाध्याय का नाम क्यों लिया
नाम समाज -सत्य है और रूप व्यक्ति -सत्य है किसने कहा नाम का क्या महत्त्व है जानने के लिए सुनें