हंसिबा षेलिबा रहिबा रंग। कांम क्रोध न करिबा संग।
हंसिबा षेलिबा गाइबा गीत। दिढ करि राषि अपना चीत॥
(हँसिए खेलिए ख़ुश रंग रहिए काम क्रोध से दूर रहें हँसिए खेलिए आनंद के गीत गाइए
किंतु अपने चित्त को
दृढ़ता से संयत रखिए!
संसार के सुख-भोग में
अचंचल रहिए!)
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४७६ वां सार -संक्षेप
ग्राम :सरौंहां
जीवनीशक्ति मानव जीवन की आधारशिला है यही शक्ति व्यक्ति को कर्मशील, जागरूक और सक्षम बनाए रखती है। इसका संरक्षण और संवर्धन अत्यंत आवश्यक है। यदि यह शक्ति क्षीण होने लगे, तो न केवल शरीर अपितु मन और आत्मा की गति भी मंद हो जाती है।
अतः आवश्यक है कि हम अपनी जीवनीशक्ति को निरंतर प्रबल बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करें चाहे वह शारीरिक व्यायाम हो, मानसिक शांति के लिए ध्यान या आत्मिक बल के लिए सत्संग, अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन
इसे जाग्रत और उत्साहित रखने का कोई भी प्रयास तुच्छ नहीं है
जीवनीशक्ति का उत्साह बना रहे, इसके लिए आवश्यक है कि हम सकारात्मक वातावरण, सात्त्विक आहार, उचित दिनचर्या और आत्म-व्यवहार को अपनाएं। इन सदाचार संप्रेषणों का श्रवण करें l अपनी जीवनीशक्ति को जाग्रत करने के लिए त्यागपूर्ण भोग की भी महत्ता है क्योंकि वह चिन्ताओं से मुक्त रखता है l
जिस मनुष्य के अन्दर यह परमोच्च चेतना जाग गयी है कि स्वयम्भू आत्मसत्ता ही, परम आत्मा ही स्वयं सभी भूत, सभी सत्ताएं या सम्भूतियां बना है, उस मनुष्य में फिर मोह कैसे होगा, शोक कहां से होगा जो सर्वत्र आत्मा की एकता ही देखता है।
कालान्तर में यही शुद्ध अध्यात्म विकृत हो गया यहीं शौर्यप्रमंडित अध्यात्म महत्त्वपूर्ण हो जाता है एकांगी अध्यात्म नहीं
आचार्य जी ने सन् २०१० में "भारत महान् भारत महान् "नामक स्वरचित कविता की चर्चा की
... भारत माता की चाह यही हों सभी स्वावलम्बी जवान...
... हमको फिर अपनी कमर बांध इन अपनों से लड़ना होगा...
आचार्य जी कहते हैं कि इसके लिए हमें संकल्पित होना होगा अपनों की पहचान आवश्यक है
शौर्य शक्ति पराक्रम की अनुभूति करनी होगी संगठित होना होगा
परिणाम तब सुखद होंगे यदि अध्ययन स्वाध्याय लेखन दिशा और दृष्टि दे रहा है तो इसका अर्थ है हमारी शक्ति वृद्धिङ्गत हो रही है पराश्रयता से भी हम बचें
आचार्य जी ने भैया डा पङ्कज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें