निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा॥
राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई॥3॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४७७ वां सार -संक्षेप
ग्राम :सरौंहां
इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर यदि हम आत्मबोध की झलक पा लेते हैं तो साधना के सांसारिक स्वरूप का निर्वाह हो ही जाएगा यह निश्चित है संसार है तो समस्याएं भी निश्चित हैं ऐसे में हम व्याकुल न हों यह प्रयास करें
आत्मचिन्तन अत्यन्त शक्तिशाली है
जब आत्मबोध जागता है कि प्रत्येक जीवात्मा में वही परमात्मा विद्यमान है, तब 'मैं' और 'तू' का भेद मिट जाता है। यह अद्वैत (द्वैत रहित) की अनुभूति है, जहाँ सभी प्राणी एक ही सत्ता के विविध रूप जान पड़ते हैं। यह अनुभूति केवल ज्ञान का विषय नहीं, बल्कि साधना और अनुभव से प्राप्त होने वाली जीवंत सच्चाई है। इसे प्राप्त करने के बाद व्यक्ति के भीतर करुणा, समत्व और सेवा की भावना स्वतः जाग्रत होती है। वह अब केवल अपने लिए नहीं, अपितु समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए जीता है।
इस प्रकार आत्मबोध न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का मार्ग है, बल्कि वह एक वैश्विक चेतना की ओर भी ले जाता है
राष्ट्र के अद्भुत तपस्वी विद्वान् विचारक वीर महापुरुष चाणक्य एक सुभाषित,जिसका मूल तत्त्व आत्मबोध है, कहते हैं
कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ । कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥
वर्तमान समय कैसा है, मेरे मित्र और शत्रु कौन हैं, मैं किस देश में हूं उस में कैसी स्थिति है, मेरी आय और व्यय में क्या संतुलन है, मैं स्वयं किस स्थिति में हूं और कितना शक्तिशाली हूं, इन सभी विषयों पर
बारंबार विचार करें l
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उत्तरकांड का उल्लेख क्यों किया भैया मुकेश जी भैया पङ्कज जी का उल्लेख क्यों हुआ
यज्ञ क्यों महत्त्वपूर्ण हैं अधिवेशन के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें