16.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७९ वां सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई॥

नव पल्लव भए बिटप अनेका। साधक मन जस मिलें बिबेका॥1॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  16 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७९ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


स्वाभाविक रूप से अधर्म और अवगुण स्वतः प्रस्फुटित होते हैं, जबकि सद्गुणों का संवर्धन अत्यंत कठिन होता है। हमारा यह सौभाग्य है कि आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम सद्गुणों को विकसित कर सकें

भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ।

सदगुर मिलें जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ॥17॥


,उत्साहित रह सकें और समाजोन्मुखता का ध्यान दे सकें

 हम आजीविकोपार्जन की व्यग्रता, परनिन्दा की प्रवृत्ति तथा क्षुद्र स्पर्धाओं में व्यस्त न रहें,आत्मविकास की ओर  भी दृष्टिपात करें


हम राष्ट्र-भक्तों का यह दुर्भाग्य था कि हमारी शिक्षा कुछ इस प्रकार की रही कि स्वाध्याय एवं गम्भीर अध्ययन के प्रति न तो हमारे अन्तःकरण में अभीप्सा शेष रही , न ही उसे किसी ने विधिपूर्वक अभिवर्द्धित किया, क्योंकि जिन विदेशी शक्तियों ने भारतवर्ष पर अधिकार किया, उनके स्वार्थ उन्हें भारत की मौलिक चेतना से काटने में ही सन्तुष्ट थे।


सुख की कामना मनुष्य को भोग-वासना की ओर आकृष्ट करती है। किन्तु भोग अंततः एक बोझ ही सिद्ध होता है। अतः उससे विमुक्त रहने का निरन्तर प्रयास आवश्यक है और कुमार्गगमन से अपने को संयत रखना अत्यावश्यक।

भारतीय संस्कृति, चिन्तन और मूल्यों के प्रति दृढ़ आग्रह रखना ही आवश्यक नहीं, अपितु भावी पीढ़ी को भी यही दृष्टिकोण प्रदान करना हमारा नैतिक दायित्व है।

आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है 

(अंक विज्ञान में आठ माया का अंक है और नौ ब्रह्म का अंक है )

आज हम इसी नैतिक दायित्व को निभाने का संकल्प लें 

पूर्णावतार भगवान् श्रीकृष्ण का जीवन और उनके उपदेश समस्त मानवता को गहन दिशा प्रदान करते हैं। वे बताते हैं कि अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा ही सच्चा धर्म है। व्यक्ति को अपने कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता किए बिना। वे यह भी सिखाते हैं कि धर्म की स्थापना हेतु यदि संघर्ष करना पड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए। श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम, करुणा, साहस और नीति का समन्वय है।  जब मानव जीवन के सारे आश्रय छूट जाएं, तब भी ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और समर्पण ही कल्याण का मार्ग है। वे यह भी बताते हैं कि जीवन में भय नहीं, आत्मबल और विवेक की आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अट्टमी शब्द का उल्लेख क्यों किया भैया राघवेन्द्र जी भैया प्रतिपाल सिंह जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें