प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४८० वां सार -संक्षेप
ग्राम :सरौंहां
रात्रि तक जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट, व्यथाएँ और क्लेश अनुभव में आते हैं किन्तु यदि प्रातःकाल हम उन्हें विस्मृत कर सकें, तो यह वेला हमारे चैतन्य को पुनः जाग्रत करने का एक उत्तम अवसर प्रदान करती है। हमें इस नवप्रभात की वेला का स्वागत करते हुए आत्मचिन्तन,आत्मावलोकन, नूतन संकल्प और आन्तरिक शान्ति के लिए पूर्ण लाभ उठाना चाहिए l सबसे पहले इसके लिए प्रातः काल हम शीघ्र जागने का संकल्प लें l
व्याधियों में मोह की व्याधि अत्यन्त हानिकारक है संसार के प्रति मोह,परिवार के प्रति मोह, धन के प्रति मोह आदि
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥
महाभारत जो एक बृहद् इतिवृत्त है जिसमें हमारी अनेक ऐतिहासिक परम्पराएं वर्णित हैं जिसमें द्वापरकाल का पारिवारिक विग्रह अत्यन्त भयानक रूप में प्रकट हुआ और जिसमें सांसारिक अहंकार का रौद्ररूप दिखा, की युद्धभूमि में अर्जुन जब अपने सगे-संबंधियों, गुरुजनों और मित्रों को अपने सम्मुख युद्ध के लिए खड़ा देखकर मोह, ममता और मानसिक भ्रम में आच्छन्न हो गया, तब उसका विवेक नष्टप्राय हो गया। वह अपने धर्म, कर्तव्य और जीवन के उद्देश्य को लेकर भ्रमित हो गया। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश देकर आत्मस्वरूप, धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान का सार समझाया।
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।
हे अर्जुन ! इस नपुंसकता को मत प्राप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए यह उचित नहीं है। हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता का त्याग करके युद्ध के लिए खड़े हो जाओ
यह प्रसंग आज भी हमें यह सिखाता है कि जब हम जीवन में किसी दुविधा या मोह में फँसते हैं, तब विवेक और सत्प्रेरणा के माध्यम से हमें सत्य और धर्म का मार्ग चुनना चाहिए।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अधिवेशन में
हमें वहां जाना है गम्भीरता से रहना है और यह देखना है कि हमारी संस्था का परिवार इतना विशाल है
बैच प्रमुख कौन हैं भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी भैया प्रदीप जी का नाम क्यों आया
अधिवेशन के लिए क्या परामर्श आचार्य जी ने आज दिया जानने के लिए सुनें