प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४८२ वां* सार -संक्षेप
ग्राम :सरौंहां
इस कलियुग में, जो साधु-संतों की प्रकृति वाले भारत -भक्त मार्ग से भटक गए हैं, जो अपने अप्रतिम अद्भुत विलक्षण मानव जीवन को जानने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, जिन्होंने अपने वास्तविक इतिहास, जो साहित्य में अद्भुत रूप से समाहित किया गया है, को जानने का प्रयास नहीं किया उन्हें दिशा और दृष्टि प्रदान करने का कार्य स्वयं हनुमान जी करते हैं। वे इस युग के आधार हैं।
भगवान् राम, जिन्होंने समाज को एक सूत्र में बाँधने वाले लोकनायक के रूप में कार्य किया। जिनका जीवन केवल व्यक्तिगत मर्यादाओं का पालन नहीं था, बल्कि सामाजिक समरसता, न्याय, करुणा और धर्म की स्थापना का एक जीवंत उदाहरण था और जिस कारण भगवान् राम को यशस्विता मिली जो केवल उनके कर्मों की नहीं, बल्कि उनके समाजोपयोगी दृष्टिकोण, समर्पण और लोकमंगल की भावना की देन है ( वैसे तो
राजा जनक, राजा दशरथ आदि समाज के प्रतिष्ठित और धर्मनिष्ठ शासक थे। वे ज्ञान, वैराग्य और मर्यादा के प्रतीक माने जाते थे। यद्यपि वे समाज से पूर्णतः विमुख नहीं थे, परन्तु उनकी भूमिका अधिकतर राजधर्म और निजी साधना तक सीमित थी। उन्होंने अपने युग में यश और आदर प्राप्त किया, किंतु वह यश उतना व्यापक और सर्वग्राही नहीं था जितना भगवान् श्रीराम को प्राप्त हुआ।)
,ने उन्हें यह दायित्व सौंपा था कि वे धर्म की रक्षा करें और जनमानस को सत्य, भक्ति एवं कर्तव्य के मार्ग पर स्थापित रखें।
हनुमान जी इस युग में भी सक्रिय रूप से लोकमंगल में संलग्न हैं
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन राष्ट्र-सेवा आदि में रत हों
संत का क्या अर्थ है
वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में कितने सर्ग हैं चुन्नीलाल कौन था छोटापन कैसे समाप्त करें जानने के लिए सुनें