20.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८३ वां* सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 सदाचार जग का अजब राग है

बजा जब जहाँ वह चमन बाग है

मनुष्यों ! सदाचार संजीवनी

इसी से सदा शुभ्र करनी बनी...

उठो फिर सदाचार का कर गहो

अमर जाह्नवी तीर तट पर रहो ।


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  20 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८३ वां* सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि जब-जब मनुष्य सदाचार से दूर हुआ, प्रकृति से कटकर केवल भोग में लिप्त हुआ, परमात्मा से उद्भूत और आवेष्टित इस संसार की सांसारिकता में लुप्त हो गया तब-तब संकट, दुःख और विनाश उपस्थित हुए हैं l


जहाँ प्रभात सो रहा 

वहीं का गात रो रहा

वो जिंदगी को ढो रहा

स्व राह शूल बो रहा

निजात्म शक्ति खो रहा

जो हो रहा सो हो रहा

प्रलाप - स्वर पिरो रहा

न गा रहा न रो रहा।



 इसलिए आह्वान है कि हम अपने जीवन में सदाचार को अवश्य अपनाएँ  यही जीवन की शुभ्रता और जगत् की रक्षा का मार्ग है।

 सदाचार  तभी प्रभावी होता है जब वह आचरण में उतरे। जैसे सर्जक ने सुंदर वीणा बनाई हो, पर यदि वह न बजे, तो उसका कोई मूल्य नहीं।

इस कारण हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर कर्मरत अवश्य हों कदाचार से बचें l 


जो व्यक्ति "तत्" (परम तत्त्व) को विद्या और अविद्या — दोनों के रूप में एक साथ जानता है, वही वास्तव में जीवन के रहस्य को समझता है"तत्" ही जन्म का कारण है और वही जन्म का अंत भी है।इसे जो इस समग्र दृष्टि से समझता है, वह जन्म की समाप्ति द्वारा मृत्यु से मुक्त होता है और पुनः जन्म के माध्यम से अमरत्व का साक्षात्कार करता है।

अर्थात, विद्या-अविद्या, जन्म-मरण — इन द्वैतों का सम्यक् ज्ञान ही मुक्तिपथ है।

हम सनातन धर्म को मानने वाले राष्ट्र -भक्त अगाध प्रेम, आत्मीयता के साथ संगठित रहें  छ्ल कपट से दूर रहें 

बालकांड में एक सोरठा है

जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।

बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ 57(ख)॥

प्रीति की सुंदर रीति देखिए कि जल भी (दुग्ध के साथ मिलकर) दुग्ध के समान भाव बिकता है, किन्तु कपटरूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है अर्थात् दूध फट जाता है और स्वाद (प्रेम) जाता रहता है॥ 


उस अध्यात्म को आत्मसात् करें जो शौर्य से प्रमंडित हो, अपने आत्म की अनुभूति करें 

भय भ्रम से दूर रहें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया  अधिवेशन के लिए आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें