निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें।
स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें।।..
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४८५ वां* सार -संक्षेप
स्थान : शारदा नगर, कानपुर
मनुष्य जब परिस्थितियों को परे रखकर प्रयत्नशील होता है, जब अपने मनुष्यत्व की अनुभूतियों को व्यवहार में प्रकट करने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है, परमात्मा पर विश्वास रखता है और भौतिकता के उत्थानों में जब जीवन का उत्थान नहीं भूलता है तब वह विशेष बन जाता है हम इसी वैशिष्ट्य के लिए प्रयत्नशील हों हमारे ऋषि मुनि ज्ञानी चिन्तक विचारक इसी की प्रेरणा देते रहे हैं और आचार्य जी भी नित्य इसी की प्रेरणा देते हैं
कर्म के सिद्धान्त जब व्यवहार बनकर दीखते हैं
तब भविष्यत् के सभी अंकुर सहज ही सीखते हैं
और जब सिद्धान्त केवल सूत्रवत् रटवाए जाते
तभी प्रवचन मंत्र सारे व्यर्थ यों ही फड़फड़ाते l
जब कर्म के सिद्धांत केवल कहे नहीं जाते, अपितु आचरण में प्रकट होते हैं जैसे प्रातःकाल का जागरण, खाद्याखाद्य विवेक, अहंकार रहित अच्छा व्यवहार आदि, तब भावी पीढ़ियां उन्हें सहज रूप से आत्मसात् कर लेती हैं। उनका आचरण स्वयं में शिक्षा बन जाता है। भविष्यत् के अंकुर केवल सुनकर नहीं, देखकर और अनुभव से सीखते हैं।
इसके विपरीत, जब वही सिद्धांत केवल स्मरण के लिए सूत्रों की भांति रटवाए जाते हैं और जीवन में उनका कोई प्रयोग नहीं होता, तब वे केवल वाणी तक सीमित रह जाते हैं। ऐसे प्रवचन, उपदेश और मंत्र जो केवल कहे जाते हैं पर आचरण में नहीं उतारे जाते, वे निरर्थक हो जाते हैं केवल शब्दों की गूंज बनकर रह जाते हैं, जिनका कोई प्रभाव नहीं होता।
आचार्य जी का कहना है शिक्षा और सिद्धांत तभी सार्थक होते हैं जब वे जीवन में उतरें
इसके अतिरिक्त संगठन कैसे पल्लवित हो सकता है भैया डा अवधेश तिवारी जी भैया डा प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें