23.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८६ वां* सार -संक्षेप

 यह संसार समर है साथी 

समर हमें ही लड़ना है 

बल विवेक के साथ समर में 

विजयविन्दु तक अड़ना है...


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  23 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८६ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमारे मानस को सुसंस्कृत  परिष्कृत करने का प्रयास कर रहे हैं

हम यदि अपने भीतर के मन, विचार, भावनाओं और दृष्टिकोण को बेहतर बनाने, उन्हें उच्च संस्कारों से युक्त करने और आंतरिक रूप से शुद्ध व विकसित करने का प्रयास करते हैं, तो यह एक उत्तम दिशा में किया गया प्रयास है।


क्योंकि व्यक्ति का व्यवहार, उसका जीवन और समाज पर उसका प्रभाव, सब कुछ उसके मानसिक स्तर पर ही आधारित होता है। यदि मन उच्च, शुद्ध और सम्यक् विचारों से युक्त है, तो व्यक्ति का जीवन भी वैसा ही बनता है।


अतः यह प्रयास केवल व्यक्ति-कल्याण ही नहीं, अपितु समाज और संस्कृति के परिष्कार का आधार बनता है। यही कारण है कि आत्मचिंतन, साधना, अध्ययन, सत्संग  और इस तरह के सदाचार संप्रेषण जैसे माध्यमों से मानस को परिष्कृत करना अत्यंत सराहनीय और आवश्यक माना गया है। यद्यपि हम कलियुग में है किन्तु कलियुग में भी सतयुग की झलक मिल जाती है l महाराणा प्रताप, शिवा जी, बन्दा बैरागी, विवेकानन्द, चन्द्रशेखर आजाद,भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, डा हेडगेवार इसी कलियुग में हुए हैं

जैसे सतयुग में भी कुछ अंश  में कलियुग विद्यमान था हमें स्मरण है हिरण्यकशिपु जो एक असुर राजा के रूप में वर्णित  है, जिसका वध भगवान् विष्णु के नरसिंह अवतार ने किया था।इसी तरह त्रेता में रावण l द्वापर में दुर्योधन  कुछ उदाहरण हैं

कलियुग में संगठन अत्यन्त आवश्यक है इसी कारण हम युग भारती के रूप में संगठित होकर समाजोन्मुखी कार्यों में रत हैं

....अतः हे, चिंतक विचारक! कर्मपथ पर पग बढ़ाओ,

मातृभू- हित स्वयं का श्रम-स्वेद शोणित भी चढ़ाओ।


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन में रत  हों

संसार में जो सत्  प्राप्त हो रहा है उसे ग्रहण करें और जो असत् है उसका परित्याग करें

संसार से विरत होकर  कुछ समय के लिए आत्मबोध की ओर उन्मुख हों किन्तु पूर्ण विरक्ति से बचने का प्रयास करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र जी भैया डा अवधेश तिवारी जी आचार्य श्री दीपक जी का नाम क्यों लिया 

श्री राम जनम पाठक जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें