प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४८८ वां* सार -संक्षेप
सितंबर में होने जा रहे अधिवेशन में हम युगभारती के सदस्य एकत्र हो रहे हैं अच्छा लग रहा है कि हम लोग मिल रहे हैं यह आनन्द का एक अवसर है किन्तु इस अधिवेशन का परम उद्देश्य यह है कि हमारे भीतर यह गहन अनुभूति जाग्रत हो कि यह राष्ट्र केवल जीवन का उत्सर्ग करने हेतु नहीं, अपितु जीवन को पूर्णता से जीने, विश्वास, शक्ति, शौर्य एवं पराक्रम के आदर्शों को मूर्त रूप देने के लिए सृजित हुआ है।उसी परम उद्देश्य में हम वह स्वर सुन लें
मेरा रंग दे बसंती चोला..
जब हम आज से और अभी से निरंतर प्रयासरत रहेंगे कि हमारे अंतःकरण में ओजस और तेजस की वृद्धि हो और नैराश्य, भय तथा भ्रम का क्षय हो, तभी हम इस अधिवेशन के माध्यम से समाज को यह आश्वस्त कर सकेंगे कि वह निराश न हो,हम संकट की घड़ी में उनके साथ दृढ़ता से खड़े हैं।
इस प्रकार, यह अधिवेशन केवल एक आयोजन नहीं, अपितु एक संकल्प है एक ऐसा संकल्प जो राष्ट्र की आत्मा को पुनः जाग्रत करने, उसके मूल्यों को पुनर्स्थापित करने और उसके नागरिकों में आत्मविश्वास, साहस एवं कर्तव्यपरायणता की भावना को प्रबल करने का प्रयास है।क्यों कि
परिस्थितियां अब भी विषम हैं
लोगों का विश्वास डगमगा गया है, और छद्म ने कई रूप धारण कर लिए हैं।
पश्चिमी प्रभाव हमारी संस्कृति और मूल्यों को प्रभावित कर रहा है
अनेक स्थानों पर कुटिलता, षड्यंत्र व्याप्त हैं
ऐसे में
हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥
अणु अणु में शक्ति की उपासना को प्रविष्ट कराने की आवश्यकता है क्योंकि शकुनि की छाया अत्यन्त भयानक रूप धारण किए हुए है
आचार्य जी अपनी एक कविता के माध्यम से
उन लेखकों और विचारकों को, जो वर्तमान सामाजिक अन्याय और भ्रष्टाचार के प्रति मौन हैं जागने और सक्रिय होने का प्रयास कर रहे हैं
री, सुप्त लेखनी जाग....
जल रही हर जगह आग, धुन्ध आँगन तक घिर आया
री, सुप्त लेखनी जाग, छल रही फिर से मृग- माया ।
है बदहवास विश्वास छद्म ने अनगिन रूप धरे
घुट रही समय की साँस, राख सब मंजर हरे-भरे
करुणा कराहती संयम की साधना बिलख रोती
देशाभिमान पर बाजारु व्यवहारों के मोती
घिर रही हस्तिनापुर के वैभव पर शकुनी छाया ॥ १ ॥
आचार्य जी ने भैया शुभेन्द्र जी भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें