कर्मव्रती संकल्प सिद्ध सेवाभावी संन्यासी हम
भारत मां के पूत जयस्वी ईश्वर के विश्वासी हम
हम भविष्य के भास्वर स्वर हैं अंधकार के सूरज हैं
गंगा का पावित्र्य और वृन्दावन की अनुपम रज हैं l
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४८९ वां* सार -संक्षेप
अपने देश की भक्ति परंपरा, वस्तुतः राष्ट्र-सेवा की मूल प्रेरणा रही है। निर्गुण और सगुण भक्ति, राम व कृष्ण भक्त शाखाओं के माध्यम से यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, अपितु सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना का संवाहक भी रही है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो भक्ति आंदोलन शक्ति-स्रोत से ही उद्भूत हुआ, जिसके अनेक रूप समाज में अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यह परंपरा जनमानस में कर्तव्यबोध और आत्मनिष्ठा को जाग्रत करती है।
इसी भक्ति परम्परा में पारंगत विद्वान् ज्ञान सम्पन्न संस्कृत के अद्भुत रचनाकार
तुलसीदास अद्वितीय हैं
जो भारतीय समाज को दिशा प्रदान करने वाले एक दिव्य दीपस्तम्भ हैं, जिनकी काव्य-कृतियां जो ब्रज वाणी में हैं
(श्री रामचरित मानस अवधी में) केवल साहित्यिक रचनाएं न होकर, सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की ज्योतियां भी हैं। उन्होंने रामकथा के माध्यम से सनातन धर्म के मूल तत्त्वों—धर्म, भक्ति, मर्यादा और कर्तव्य को जन-जन में प्रतिष्ठित कर, राष्ट्रभक्ति एवं अध्यात्म को परस्पर पूरक रूप में प्रस्तुत किया।
उनकी वाणी में जहाँ एक ओर गहन भक्तिपरक संवेदना है, वहीं दूसरी ओर शौर्य, आत्मबल और धैर्य की उज्ज्वल प्रतिष्ठा भी दृष्टिगोचर होती है। तुलसीदास ने अपने युग में खंडित हो रहे समाज को एकात्मता, धर्मनिष्ठा एवं संस्कारशीलता की ओर उन्मुख कर, अध्यात्म के आलोक में राष्ट्र का दीप प्रज्वलित किया। इस प्रकार वे केवल भक्तकवि नहीं, अपितु राष्ट्र के पुनर्निर्माणकर्ता भी सिद्ध होते हैं। तुलसीदास सरीखे व्यक्तित्व का जब हम अपने भीतर भाव समाहित करेंगे तो हम उत्साहित, संकल्पित, आश्वस्त रहेंगे और विश्वासपात्र लोगों को संगठित करेंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने २८, २९ व ३० अगस्त को होने जा रहे किन कार्यक्रमों की चर्चा की, वैराग्य संदीपिनी का उल्लेख क्यों हुआ,आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण जो शास्त्रों और लोक परंपराओं के सम्मिश्रण की खोज करते हैं और आध्यात्मिकता, संस्कृति और जीवन मूल्यों पर गहन चर्चा करते हैं की चर्चा क्यों हुई 'घुन मत बनो' किसने कहा था दीनदयाल जी ने किसके आदेश पर राजनीति में प्रवेश किया जानने के लिए सुनें