गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर आप सभी को अतीव हर्ष एवं मंगलमय शुभकामनाएं
सनातन धर्म मानव की सतत क्रियमाण गतिविधि है
तपस्वी चिन्तकों सुमनीषियों की प्रगत सन्निधि है
इसे माँ भारती की कोख ने जन्मा दुलारा है
यही संजीवनी सारे जगत भर की यही निधि है
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४९० वां* सार -संक्षेप
*युगभारती* एक ऐसी संस्था है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित है। इसका उद्देश्य उन पढ़े-लिखे, सुयोग्य, सदाचारी एवं राष्ट्रभक्त सनातन धर्म को मानने वाले गृहस्थों को संगठित करना है, जो अपने जीवन में गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपनी उत्तरदायित्व-बोध से प्रेरित भूमिका निभाना चाहते हैं। युगभारती, ऐसे व्यक्तियों को एक मंच प्रदान कर, उन्हें राष्ट्र-निर्माण की दिशा में सतत प्रेरित एवं सक्रिय करती है। यह संस्था अब एक रूप धारण कर रही है
जिस कारण से कुछ लोग इसके स्वरूप का अवबोधन करने में प्रवृत्त हुए हैं।जब कोई संस्था अपना रूप धारण करती है तो इसके पीछे भगवत्ता होती है
हम युगभारती संस्था के सदस्यगण भलीभांति इस बोध से युक्त हैं कि हम सारी शक्तियों के केन्द्र परमात्मा की लीलामयी क्रीड़ा में अभिप्रेत पात्र रूप में नियोजित हैं तथा हमें परमात्मा द्वारा प्रदत्त अपनी भूमिका का सम्यक् रूपेण निर्वहन करना अनिवार्य है। और हम ऐसा करने का प्रयास भी कर रहे हैं हम आपाधापी वाले इस कलियुग में रामकथा सुनते सुनते रामत्व की अनुभूति करने लगे हैं
निष्काम, समर्पण-भाव से कर्म करना हम अनिवार्य समझने लगे हैं
आचार्य जी ने बताया पराधीनता भयानक है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसके भाषण की चर्चा की
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