प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४९२ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर सिविल लाइंस उन्नाव
हम सौभाग्यशाली हैं कि इन परोक्ष सदाचार संप्रेषणों की एक अनुवर्तन-शृङ्खला चल रही है यद्यपि आचार्य जी कई बार विषम परिस्थितियों में घिर जाते हैं
आत्मबल,आत्मसमर्पण को जाग्रत करने के लिए सदाचार एक प्रभावी सशक्त माध्यम है। सदाचार केवल बाह्य आचरण नहीं, अपितु अंतःकरण की शुद्धता, संयम और धर्ममय जीवन की प्रतिष्ठा का साधन है। जब व्यक्ति सदाचार का अनुसरण करता है, तो वह अपने भीतर स्थित आत्मिक सामर्थ्य को पहचानने और जाग्रत करने लगता है। यह आत्मिक बल ही उसे मानसिक रूप से दृढ़, निष्ठावान, और कर्तव्यपरायण बनाता है। साथ ही, आत्मभक्ति — जो आत्मा के प्रति श्रद्धा और संयम का भाव है — वह भी सदाचार के माध्यम से प्रकट होती है। इस प्रकार सदाचार व्यक्ति को भीतर से जाग्रत कर समाज में सच्चरित्रता और नैतिकता की स्थापना में सहायक होता है।
आत्ममन्थन करते हुए हम सदैव विचार करते रहें कि हमने मनुष्य के रूप में जन्म लिया है और हमें ईश्वर ने मनुष्यत्व के प्रसरण के लिए यहां भेजा है यह हमारे सनातन धर्म की विश्वासपूर्ण चिन्तना है
अतः हम अपने मनुष्यत्व की अनुभूति करें और अपने कर्तृत्व को पल्लवित पुष्पित फलित करें किन्तु कर्म करते हुए फल की इच्छा न करें फल की इच्छा उस कर्म में हमें रमने नहीं देती
हम पुरुषार्थ की अनुभूति करें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को गहनता से जानें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया मोहन जी भैया वीरेन्द्र जी भैया अक्षय जी भैया दृश्यमुनि जी के नाम क्यों लिए
पं परमानन्द जी का उल्लेख क्यों हुआ
अधिवेशन के विषय में आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें