प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४६६ वां सार -संक्षेप
दैहिक, दैविक और भौतिक इन तीनों प्रकार के ताप व्यक्ति को जीवन में विविध स्तरों पर पीड़ा पहुँचाते हैं। ये शारीरिक रोगों, प्राकृतिक आपदाओं और सांसारिक संघर्षों के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका प्रभाव मन, शरीर और जीवनशैली पर पड़ता है।ऐसे में यदि क्षणभर के लिए भी जीवन में आनन्द की अनुभूति हो जाए, तो वह जीवन निष्फल नहीं कहा जा सकता। मनुष्य का जीवन सर्वाङ्गपूर्ण जीवन है और यदि कर्मशीलता, सद्संगति, सम्यक् विचार और संतुलन से परिपूर्ण जीवन से भी कोई ऊबता है, तो वास्तव में वह दुर्भाग्यशाली है।इस कारण जब भी हमें कोई कष्ट हो बाधा हो हमारे लिए श्रीरामचरित मानस का सस्वर पाठ करना उचित रहेगा
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥
रामकथा पंडितों को विश्राम देने वाली, सब मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और कलियुग के पापों का नाश करने वाली है। रामकथा कलियुग रूपी साँप के लिए मोरनी है और विवेकरूपी अग्नि के प्रकट करने के लिए अरणि है।
ऐसी रामकथा जो घर घर में पहुंची हुई है उसके होने के बाद भी यदि हम कष्ट में हैं दुःखी हैं तो यह दुर्भाग्य है
हमारा लक्ष्य है शान्ति शौर्य के साथ विचार व्यवहार के साथ और आचार चिन्तन के साथ
आत्मनिरीक्षण अत्यावश्यक है
रात भर का है मेहमां अँधेरा
किसके रोके रुका है सवेरा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संपूर्ण सिंह जी, भैया शौर्यजीत सिंह २००८,भैया मुकेश जी, भैया मनीष कृष्णा जी और भैया पंकज श्रीवास्तव जी के नाम क्यों लिए उत्थित समाधि -स्वर का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें