4.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी /एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६७ वां सार -संक्षेप

 असम्भवं हेममृगस्य जन्म

तथापि रामो लुलुभे मृगाय।

प्रायः समापन्नविपत्तिकाले

धियोऽपि पुंसां मलिना भवन्ति॥

(आपदा के समय लोगों की मति आमतौर पर भ्रष्ट हो जाती हैं।)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  दशमी /एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  4 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६७ वां सार -संक्षेप


हमने यह संकल्प लिया था कि अपने समस्त कर्तव्यों और गतिविधियों के बीच भी हमारी उन्मुखता सदैव समाज के सशक्तीकरण की ओर बनी रहेगी। इसी आधार पर हमने अपना लक्ष्य निर्धारित किया था  

"राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष।"  

यह लक्ष्य न केवल हमारी दिशा का संकेतक है अपितु हमारे चिंतन और आचरण की मूल प्रेरणा भी है। हमें इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए l

एक प्रश्न वास्तव में आत्ममंथन के निमित्त है कि क्या हम स्वयं अपने आचरण, व्यवहार और विचारों से अपने आसपास सकारात्मकता, मार्गदर्शन और प्रेरणा का प्रकाश फैला रहे हैं?  यदि उत्तर अस्पष्ट है, तो यही जागरण का क्षण है  आत्मनिरीक्षण करने का पल है। यह सही है कि यदि हम प्रकाश फैला रहें हैं तो हम एक ज्योति हैं किन्तु वह ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि अंधकार बहुत भयानक है जिसके लिए ज्वाला आवश्यक है ज्योति से ज्वाला बनने की प्रक्रिया संगठन की शक्ति से ही संभव होती है। अकेली ज्योति सीमित प्रकाश देती है, किन्तु अनेक ज्योतियों का समवेत प्रकाश ज्वाला बनकर अंधकार को छिन्नभिन्न कर देता है। संगठन, व्यक्तियों की ऊष्मा और ऊर्जा को एक दिशा देता है  यही वह उपक्रम है जो साधारण को असाधारण बनाता है।Energy से Synergy बेहतर है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लोकतन्त्र, व्यवस्थातन्त्र की विकलांगता का भी संकेत दिया, उन्होंने सुझाव दिया कि स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों,  जिनके हाथों में सारा तन्त्र होता है,से संपर्क  अवश्य करते रहें 

भैया संदीप रस्तोगी जी, भैया शैलेश जी, भैया प्रदीप शुक्ल जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें