प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४७१ वां सार -संक्षेप
स्थान : शारदा नगर, कानपुर
सनातन धर्म एक शाश्वत जीवन-पद्धति है जो आदिकाल से भारतीय चिंतन का मूल आधार रही है। यह धर्म केवल पूजा-पद्धतियों तक सीमित नहीं, अपितु जीवन के हर पक्ष (धार्मिक, नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक )का समग्र मार्गदर्शन करता है।
यह धर्म उस सार्वभौमिक सत्य को स्वीकारता है जो समय, स्थान और परिस्थिति से परे है। इसमें आत्मा की अमरता, पुनर्जन्म, कर्मफल और मोक्ष की अवधारणा के साथ एक समन्वित दृष्टिकोण है, जिसमें भक्ति, ज्ञान, योग और कर्म सभी को स्थान प्राप्त है। इसमें मनुष्य अपने मनुष्यत्व का स्मरण करता है l यह प्रत्येक जीव में ईश्वर की अनुभूति कर, सभी के कल्याण की भावना को पोषित करता है।समस्याओं के आने पर हम अपने इष्ट का स्मरण करते हैं जिससे हमें प्रेरणा प्राप्त होती है और उस समस्या का समाधान हो जाता है हमारे सनातन धर्म का मूल उद्देश्य है अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना, मनुष्य के भीतर और समाज के स्तर पर भी।
समाज को देखते हुए ही हमने अपना संगठन युगभारती बनाया इस संगठन युगभारती को साधनापूर्वक, अपने निरंतर प्रयासों से जिस स्तर तक विस्तार दिया है, उसमें यदि कभी डांवाडोल स्थिति उत्पन्न हो भी जाए, तो हमें यह अटल विश्वास रखना चाहिए कि श्रीराम हमारा संबल बनेंगे और मार्गदर्शन देंगे।
आंधियां जोर की चलती हों
उल्काएं रूप बदलती हों
धरती अधैर्य धर हिलती हो
अपनों की सुमति न मिलती हो
तब जय श्रीराम पुकार उठो
अपना पौरुष ललकार उठो
पुरखों का शौर्य निहार उठो
हनुमन्त तेज को धार उठो
साधना की जिस भूमि पर हमने श्रमपूर्वक उन्नयन किया है, उसमें कोई विकार न आने पाए—यही हमारा सतत प्रयास होना चाहिए।
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि प्रातः काल हम जल्दी उठें,मुस्कराती प्रकृति को निहारें,आत्मबोध की अनुभूति करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी का उल्लेख क्यों किया १४ को आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें