हनुमान जी हमारे रक्षक हैं तो हमें अपना विश्वास नहीं खोना है....
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४७२ वां सार -संक्षेप
इस समय संसार में प्रदर्शनों की भरमार है ऐसे में हमारे अन्दर तत्त्व बना रहे तो यह अत्यन्त आश्चर्य का विषय है और आनन्दप्रद भी है आचार्य जी नित्य हमें इसी तत्त्व की अनुभूति कराते हैं
जिन व्यक्तियों के माध्यम से संस्कार हमारे भीतर प्रविष्ट हो जाते हैं वे व्यक्ति हमारे लिए श्रद्धास्पद हो जाते हैं आचार्य जी इसी कारण हमारे लिए श्रद्धास्पद् हैं क्योंकि वे नित्य विषम परिस्थितियों से घिरे रहने पर भी अपना बहुमूल्य समय देकर हमें संस्कारित करने का प्रयास करते हैं ताकि संस्कारों के कारण तप और त्याग की भावना हमारे स्वान्त में विकसित हो जाए हमारे अन्तःकरण में श्रद्धा और विश्वास जाग्रत हो जाए
जब हमारे भीतर श्रद्धा और विश्वास जाग्रत होता है तो हमें अपने हृदय में स्थित ईश्वर के दर्शन हो जाते हैं
जैसे ही विश्वास दृढ़ीभूत होता है हमें शक्ति भक्ति आदि की अनुभूति होने लगती है
श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है।।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।
इस समय सनातन धर्म के पर्वों का विकास हो रहा है यह एक शुभ लक्षण है इस विकास के साथ यदि विचार भी संयुत हो जाए तो निश्चित रूप से यह आनन्द का विषय होगा
आचार्य जी कहते हैं कि व्यक्ति का महत्त्व नहीं है व्यक्ति का व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण है इसलिए हमारा लक्ष्य भी है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रावणी उपाक्रम का क्या अर्थ बताया भैया राघवेन्द्र जी आदि का नाम क्यों लिया अधिवेशन के लिए क्या परामर्श दिया अग्निहोत्री जी के बाल विद्यालय की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें