प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५०५ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले नहि नहि रक्षति डुकृङ्करणे॥
यह अंश
*"भज गोविन्दम्"* जो आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भक्ति-ग्रन्थ है, जिसे *मोहमुद्गर* (अर्थात् मोह को तोड़ने वाला) भी कहा जाता है, से लिया गया है
हे मोह में डूबे हुए बुद्धिहीन मनुष्य! तू गोविन्द का भजन कर, उसका स्मरण कर। जब मृत्यु समीप आ जाती है, तब व्याकरण के नियम ("डुकृङ्" आदि) तुझे नहीं बचा सकते। अर्थात्, शुद्ध तत्त्वज्ञान और ईश्वरभक्ति ही अंतिम मुक्ति का मार्ग है, न कि केवल शास्त्रीय पांडित्य।
यह ग्रंथ जीवन के अंतिम सत्य की ओर उन्मुख करता है। इसमें शंकराचार्य ने यह बताया है कि केवल विद्या, धन या तर्क से मोक्ष नहीं मिलता — बल्कि भगवान् की भक्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है। सांसारिक मोह, अहंकार, धन और ज्ञान के प्रति आसक्ति से हटकर ईश्वर की भक्ति में रमने का आह्वान है।
जब आयु बढ़ती है तो शरीर स्वाभाविक रूप से दुर्बल होने लगता है, परन्तु मन में वैसी दुर्बलता नहीं आती। यह सोचकर व्याकुल नहीं होना चाहिए कि अब शरीर पहले जैसा नहीं रहा। यह तो प्रकृति की एक सामान्य सहज प्रक्रिया है।
हमें इस समझ के साथ संसार में जीवन बिताना चाहिए। केवल जीना ही नहीं, अपितु संसार में रहते हुए भी उसमें लिप्त नहीं होना चाहिए। जब यश, धन, सुख-सुविधाएं महत्त्वहीन हो जाते हैं, तब जो सहज वैराग्य उत्पन्न होता है, वही मनुष्य को सच्चा आनन्द, शान्ति और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
त्यागमयी कर्ममयी संस्कृति के उपासक हम युगभारती के सदस्यों ने अपना लक्ष्य बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
मातृभूमि के प्रति प्रेम, कर्तव्य और सेवा की भावना के साथ राष्ट्र को परमेश्वर स्वरूप मानते हुए उसके कल्याण हेतु स्वयं को समर्पित करने का यह लक्ष्य है
आगामी अधिवेशन वास्तव में क्या है पं दीनदयाल की किस पुस्तक की चर्चा हुई
अधिवेशन के लिए हमें किस प्रकार की तैयारी करनी चाहिए जानने के लिए सुनें