12.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०६ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 कवि ऋषियों का ही वंश अंश देवों का है

कविता ने ही हर समय जगाया जन-जीवन ।

दायित्व आ गया कवि पर फिर से एक बार

वह जागे और जगाए सोया जन-गण-मन ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 12 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०६ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां

आचार्य जी हमें प्रायः लेखन-योग की महत्ता को समझाने का प्रयास करते हैं लेखन से हमें शक्ति प्राप्त होती है वर्तमान परिस्थितियों में ध्यान धारणा को अत्यन्त विधि विधान से करना असंभव ही प्रतीत होता है  लेखन के समय हम विशेष ध्यान में अवस्थित हो जाते हैं और जब उस ध्यान को हम अक्षरों में अंकित कर देते हैं तो एक प्रकार से अपने भावों के स्वरूप का निर्माण करके स्वयं उसके दर्शन करते हैं सन् २०१० की लिखी

 आचार्य जी की यह कविता देखिए 


चर्चा है अपना देश प्रगति के पथ पर है

अनुपम खोजों से भास्वर पूरा आसमान ।

व्यापारिक वैभव नित्य छू रहा नए शिखर

अपने वैज्ञानिक दुनिया भर के कीर्तिमान ||

परमाणु परीक्षण हुआ और दुनिया चौंकी

प्रतिबन्ध लगाए किन्तु स्वयं ही तोड़ दिए ।

चर्चा गूँजी दुनिया के कोने-कोने में

अभिमन्त्रित अग्निबाण जैसे ही छोड़ दिये ||..

इसी कविता में आचार्य जी कहते हैं भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल दूसरों की नकल बनकर रह गई है। इसमें न तो भावनाओं का समावेश है और न ही आत्मीयता का भाव।  अंग्रेज़ी भाषा के प्रति व्यामोह चिन्ताजनक है हमारे इतिहास को भी इस तरह बदला गया है कि अपने गौरव, अपने पूर्वजों और अपनी संस्कृति की पहचान ही खोती जा रही है।


गुरुकुल जैसी आत्मीय और संस्कार आधारित शिक्षा पद्धति अब विस्मृति की ओर बढ़ चुकी है। शिक्षा से स्वदेश, स्वभाषा और स्वधर्म का बोध समाप्त होता जा रहा है। इस कारण शिक्षा केवल नौकरी पाने का माध्यम बन गई है, जीवन निर्माण का साधन नहीं।

 आचार्य जी बताते हैं ग्राम्य जीवन की स्थिति  अब भी अत्यन्त दयनीय है। सामान्य जन केवल रोज़गार तक सीमित हो गए हैं और समाज तथा सार्वजनिक हितों के प्रति उनका रुझान कम हो गया है। गांवों में आज भी प्रभावशाली वर्ग का दबदबा बना हुआ है। स्वतंत्रता के बाद भी गांवों की स्थिति बेबसी की मिसाल बनी हुई है। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की चिंता में  लगातार गांवों से पलायन हो रहा है दुर्भाग्यवश संसद और नीति-निर्माण के मंचों पर गांवों की चर्चा केवल औपचारिकता बनकर रह गई है, कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो रही।कभी भारत की संस्कृति और आत्मनिर्भरता का आधार रहे गांव आज उपेक्षा, असमानता और पलायन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

और

इतिहास गवाही देता है दुनियाभर का

जन-संस्कार से देश सजाए जाते हैं।

अपने जन-मन की ताकत के बलबूते पर

गौरव गरिमा के ध्वज फहराए जाते है 

तो

अब कौन उठाए जनता के मन में उफान

यह 'यक्ष प्रश्न' चिन्तन के लिए चुनौती है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अखिलेश तिवारी जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें