14.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०८ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 14 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०८ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


इस असामान्य संसार की विविधताओं और जटिलताओं का अनुभव करते हुए, जब हम इस संसार के स्वरूप को भली-भाँति समझते हैं किन्तु इसके गूढ़ सार की ओर उन्मुख रहने का प्रयास करते हैं, मनुष्यत्व की अनुभूति करते हैं, सन्मार्ग पर चलने का प्रयत्न करते हैं, उत्साह, उमंग की सुन्दर अभिव्यक्तियां करते हैं तब हम जीवन की अनेक समस्याओं, विकृतियों और उलझनों से स्वयं को सुरक्षित रख लेते हैं। यही विचार है भक्ति है और शक्ति भी है l यह तथ्य निस्संदेह पूर्णतः सत्य है। यद्यपि संसार में पूर्ण कुछ भी नहीं होता किन्तु इस अपूर्णत्व को सतत गतिमान रखने की परमात्मा की प्रक्रिया अनादि काल से चल रही है और अनन्त काल तक चलती रहेगी


गोस्वामी तुलसीदास जिस परम्परा में अवतरित हुए, वह आर्ष परम्परा थी, जिसकी मूल विशेषता यह रही है कि वह युगानुकूल परिस्थितियों में मोहग्रस्त समाज को जाग्रत करने का कार्य करती है। इस परम्परा का उद्देश्य सदा यही रहा है कि समय, स्थान और समाज की अवस्था के अनुरूप मनुष्य को सत्य, धर्म और आत्मबोध की दिशा में प्रेरित किया जाए। मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में   हमारा सनातनधर्मी समाज विविध कारणों से सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक दृष्टि से प्रमादावस्था में था। ऐसे समय में  देशभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने *रामचरितमानस* के माध्यम से जनमानस को पुनः धर्म, मर्यादा, आदर्श एवं आत्मबोध की ओर उन्मुख किया। यह ग्रंथ केवल धार्मिक काव्य नहीं, अपितु एक जागरण-ग्रंथ बनकर समाज के हृदय में नवचेतना का संचार करने वाला सिद्ध हुआ।

उसे देश -भक्ति की अनुभूति कराने का सशक्त माध्यम बना l

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥

तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥


आचार्य जी ने राष्ट्रार्पित भाव से आगामी अधिवेशन,जो शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का एक उदाहरण बनने जा रहा है, में सम्मिलित होने का परामर्श दिया l हमारे यहां संसार के दोषयुक्त भावों के लिए शुद्धि का  अभियान चलता है यह अधिवेशन भी उसी का हिस्सा है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अवधेश तिवारी जी को अधिवेशन में चलने के लिए क्या परामर्श दिया भैया विवेक चतुर्वेदी जी की कौन सी बात अच्छी लगी जानने के लिए सुनें