प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५१० वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
भगवान् राम ने इस लोक में "नर" के रूप में अवतार लेकर कर्मप्रधान जीवन के साक्षात् विग्रह रूप में जन्म लिया वे केवल दैवीय चमत्कारों से युक्त पुरुष न होकर, चेतन और विवेकयुक्त कर्तव्यनिष्ठ मानव के आदर्श रूप में प्रकट हुए। उनका अवतरण कर्म के क्षेत्र में जाग्रत चैतन्य के रूप में हुआ, जिसमें जीवन का प्रत्येक पक्ष धर्म, मर्यादा, त्याग, और नीति से अनुप्राणित था।
मानस के अयोध्या कांड में एक प्रसंग है सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर कहते हैं कि राजा दशरथ अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें
सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥1॥
इधर तो सब यह कह रहे हैं कि कल कब होगा, उधर कुचक्री देवता विघ्न मना रहे हैं क्योंकि वे रावण से पीड़ित हैं वे नहीं चाहते कि श्री राम दशरथ की तरह राजा हो जाएं
संसार का संसारत्व परमात्मा पहले से ही निर्धारित कर देता है तो
करम गति टारै नाहिं टरी ॥
मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि ।
सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥
कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥
और तब उसी तरह के प्रसंग बनने लगते हैं
सरस्वती जी को बुलाकर देवता विनय कर रहे हैं और बार-बार उनके पैरों को पकड़कर उन पर गिरते हैं॥ वे कहते हैं हे माता! हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आज वही कीजिए जिससे श्री रामचन्द्रजी राज्य त्यागकर वन को चले जाएँ और देवताओं का सब कार्य सिद्ध हो
तो मां सरस्वती मन्थरा जो कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर उसकी बुद्धि को फेरकर चली गईं
विघ्न बाधाएं आने ही लगीं
हम भी जब कोई अच्छा कार्य करने का संकल्प करते हैं विघ्न बाधाएं आती हैं हम महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बनाते हैं तो विघ्न बाधाओं के आने पर भी हमें जो उस परमात्मा के पार्षद हैं उस लक्ष्य से विमुख नहीं होना चाहिए
लक्ष्य तक पहुँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा
लक्ष्य है अति दूर दुर्गम मार्ग भी हम जानते हैं,
किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं,
जब प्रगति का नाम जीवन, यह अकाल विराम कैसा ।।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राजेश खुराना जी का उल्लेख क्यों किया राधाकृष्ण अग्रवाल जी जो कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति थे उनकी आंखों में आंसू किस कारण आ गए जानने के लिए सुनें