17.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५११ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 कहाँ पर कौन सा अभियान चलता है उठो देखो,

कहाँ किसका कुटिल अभिमान पलता है चलो देखो

कहाँ किसका सदा सम्मान घुलता है उसे देखो

कि कुछ का प्राण -दीपक भी सतत जलता उसे देखो |

बड़ा अद्भुत निराला देश अपना है उसे जानो

कि इसके प्राण की तासीर अनुपम दिव्य पहचानो

अजब सौभाग्य अपना है कि सत् एकत्र आया है

तपस्या और संयम का गजब मंजर नुमाया है

प्रमादी बन न सोओ घोंसलों में,आत्म को परखो

दधीची वंश के ही अंश हो यह भी तनिक निरखो

उठो वृत्रासुरी अभिमान को फिर से सुलाना है

असुर कुल हो जहाँ जैसा वहीं उसको जलाना है


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 17 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५११ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक अत्यन्त सौम्य, शांत स्वभाव वाले, राष्ट्रनिष्ठ विचारक और भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेता थे। वे वैचारिक दृढ़ता रखते हुए भी किसी के प्रति दुर्भाव नहीं रखते थे। विरोधी दलों के नेता भी उनकी सादगी, तर्कशीलता और विचारों की गरिमा के कारण उनका सम्मान करते थे जैसे

बैरिउ राम बड़ाई करहीं। बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं॥

सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा॥4॥


  अत्यन्त रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी हत्या हो जाती है क्योंकि दुष्ट राष्ट्र- विरोधी तत्त्व  चाह रहे थे कि उनकी हत्या से भारतीय जनसंघ का विचार और भारतीय जीवन दर्शन का व्यवहार स्थगित हो जाएगा 

यह एक अत्यन्त हृदयविदारक घटना थी जिसने अनेक राष्ट्र -भक्तों को झकझोर दिया

उसी दहकती ज्वाला से उत्पन्न भावना के परिणामस्वरूप दीनदयाल विद्यालय अस्तित्व में आया जो केवल सर्टिफिकेट बांटने के लिए नहीं खोला गया वह विद्यालय तो तप त्याग सेवा समर्पण साधना का स्वरूप बना



यह देश वास्तव में एक विलक्षण और अद्वितीय भूमि है उसका साक्षात्कार करना आवश्यक है।   हम प्रमादी बनकर शयन  ही न करते रहें जाग्रत रहें  और आत्मनिरीक्षण करें

हम अमरत्व के उपासक राष्ट्र भक्तों को देश में कहाँ-कहाँ कौन-कौन से दुराग्रहपूर्ण  अहंकारपूर्ण अभियान संचालित हो रहे हैं, इसे देखने और समझने की आवश्यकता है।



अब पुनः समय आ गया है कि वृत्रासुर रूपी दानवी अहंकार को शांत किया जाए। जहाँ-जहाँ असुरी प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं, वहीं पर उन्हें नष्ट करने का संकल्प लेकर कार्यरत होना चाहिए आगामी ओरछा अधिवेशन इसी संकल्प के लिए हम लोग कर रहे हैं हमें इस पर गर्व होना चाहिए कि तप, त्याग और संयम की साधना वहां एक साथ दृष्टिगोचर होगी अध्यात्म शौर्य से प्रमंडित रहना अनिवार्य है इसकी अनुभूति होगी

इसके अतिरिक्त समाज को क्या दिखाना है  अपने विद्यालय का विकास कैसे हुआ जानने के लिए सुनें