21.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१५ वां* सार -संक्षेप स्थान : ओरछा

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 21 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१५ वां* सार -संक्षेप

स्थान : ओरछा


प्रातःकाल का जागरण और प्रातःकाल का चिन्तन अद्भुत परिणाम देता है तो आइये इसी चिन्तन में रत होने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में

अखंड भारत हम सनातनधर्मी राष्ट्र -भक्तों का एक स्वप्न है जिसे साकार करने के लिए हम लगातार प्रयत्नशील हैं यह हमारा देश है  यह हमारी धरा है यह हमारा गगन है  ये भाव मात्र शब्द नहीं, आत्म-संवेदन के ऐसे स्रोत हैं जो हमारे भीतर चेतना, ऊर्जा और कर्तव्यबोध को जाग्रत कर देते हैं। ये भाव हमें अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण, संरक्षण और सेवा के लिए प्रेरित करते हैं इन भावों विचारों में प्रवेश करने पर हमारे भीतर अतुलनीय शक्ति और प्रेरणा का संचार होता है। यही ऊर्जा हमें कठिनाइयों से लड़ने, धैर्यपूर्वक चलने और सत्कर्म में रत रहने की शक्ति देती है। हम राष्ट्र भक्तों का कर्तव्य है कि हम सत्कर्मों में रत रहें चाहे जैसी परिस्थितियां हों

तुलसीदास जी के समय भारत में विषम परिस्थितियां थीं

वे लिखते हैं


भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।

सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥5॥

भला भलाई ही ग्रहण करता है और नीच नीचता को ही ग्रहण किए रहता है। अमृत की सराहना अमर करने में होती है और विष की मारने में॥



उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥

सुधा सुरा सम साधु असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू॥3॥

दोनों (संत और असंत) जगत् में एक साथ पैदा होते हैं, पर एक साथ पैदा होने वाले कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं।  साधु अमृत के समान (मृत्यु रूपी संसार से उबारने वाला) और असाधु मदिरा के समान (मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला) है, दोनों को उत्पन्न करने वाला जगत् रूपी अगाध समुद्र एक ही है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज अधिवेशन के विषय में क्या बताया, समाजोन्मुखता के लिए हमें क्या करना चाहिए हमें कैसे पाप लग सकता है अगला अधिवेशन कहां होना चाहिए जानने के लिए सुनें