22.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 22 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१६ वां* सार -संक्षेप


दीनदयाल जी भारत की अखण्डता की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करते रहे। दीनदयाल जी  विचार और कर्म में अखण्ड भारत की स्थापना को राष्ट्रीय उद्देश्य मानते थे।हमें भी इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए


यह दृष्टिकोण केवल भौगोलिक अखण्डता नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और आत्मा की एकता को भी इंगित करता है।

हमें अपनी कायरता को त्याग इसी अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है

आचार्य जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन,

खण्ड ६, पृष्ठ ७९-८० में छपे अंश का उल्लेख किया

यह अंश है मई १९५२ में दीनदयाल जी द्वारा प्रस्तुत

जनसंघ का त्रिमुखी सिद्धान्त

१. अखण्ड भारत मात्र एक विचार न होकर, विचारपूर्वक

किया हुआ संकल्प है । कुछ लोग विभाजन को पत्थर की रेखा

मानते हैं। उनका ऐसा दृष्टिकोण सर्वथा अनुचित है। मन में

मातृभूमि के प्रति उत्कट भक्ति न होने का ही वह परिचायक

है । ऐसे लोगों ने न केवल अपने इतिहास को भुला दिया है,

अपितु इतिहास का उन्हें यथार्थ ज्ञान भी नहीं है। मुसलमानों

के शासन में भी इस देश के अनेक टुकड़े हो गये थे। किन्तु उस

समय के हमारे अध्वर्युओं ने उन टुकड़ों को वज्रलेप नहीं माना

था । अखण्ड भारत के लिए वे लड़ते रहे थे ।

२. जनसंघ के सिद्धान्त का दूसरा सूत्र है- 'एकराष्ट्रवाद' ।

राष्ट्र में कोई अल्पमत नहीं होता अर्थात् कोई अल्पसंख्यक भी नहीं

हो सकते। शरीर में एक नाक, दो आँखें होती हैं; किन्तु नाक

अल्पसंख्यक और आँखें बहुसंख्यक हैं, ऐसा हम नहीं कह सकते ।

वे दोनों एक ही शरीर के अवयव होते हैं ।

३. जनसंघ का तीसरा सिद्धान्त-सूत्र है - 'एक संस्कृति' ।

भारत में ईसाइयों या मुसलमानों की कोई अलग संस्कृति नहीं

है । संस्कृति का सम्बन्ध उपासना - प्रणाली से नहीं, देश से होता है। मुसलमानों के सामने कबीर, जायसी, रसखान के आदर्श हैं।

भारत में भारतीय होकर रहना चाहने वाले मुसलमानों के लिए

इन कवियों का जीवन अनुकरणीय है । आज मुसलमानों की

राष्ट्र भक्ति का केन्द्र भारत के बाहर है। मुसलमानों को अपनी

इस भूमिका में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए ।



आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों ये हमें शक्तिसंपन्न करेंगे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय गुप्त जी भैया सौरभ जी भैया समीर राय जी भैया शैलेन्द्र पांडेय जी के नाम क्यों लिए  प्रेम के आधार क्या हैं जानने के लिए सुनें