23.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 23 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१७ वां* सार -संक्षेप


विद्यालय केवल ईंट-पत्थर से निर्मित भवन या उपकरणों का संग्रह नहीं होते, वरन् वे ऐसे प्रेरणाकेन्द्र होते हैं जहाँ से समाज को उचित दिशा एवं व्यापक दृष्टि प्राप्त होती है। विद्यालय व्यक्ति को केवल व्यक्तिगत उन्नति नहीं, अपितु समाज के प्रति समर्पण भाव से प्रेरित करते हैं। ये संस्थान ही अतीत में *गुरुकुल* एवं *आश्रम* के रूप में विद्यमान थे, जिनके माध्यम से भारत ने अपने ज्ञान, संस्कृति एवं जीवनदृष्टि से सम्पूर्ण विश्व को आलोकित किया और 'विश्वगुरु' की प्रतिष्ठा प्राप्त की।

धन का जीवन में विशिष्ट स्थान है, परन्तु केवल धन को ही जीवन का परम लक्ष्य मानना उचित नहीं। प्राचीन शिक्षा-प्रणाली में यह बोध कराया जाता था कि जीवन के अन्य आयाम  जैसे धर्म, ज्ञान, नैतिकता, सेवा, संयम, विवेक आदि भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं, अपितु जीवन का समग्र उत्थान था।


हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य मुखम् अपिहितम् अस्ति। पूषन् तत् सत्यधर्माय दृष्टये त्वम् अपावृणु ॥



 विद्यालयों की यही भूमिका आज भी सामाजिक निर्माण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है यह हमें समझना चाहिए आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम समाजोन्मुखता का ध्यान रखें भाव विचार शुद्ध रखें यशस्विता के लिए प्रयास करते रहें

इसके अतिरिक्त भैया संतोष जी, भैया प्रदीप वाजपेयी जी,भैया दीपक शर्मा जी, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी, श्री कृष्णगोपाल जी, श्री श्यामबाबू जी, श्री चन्द्रप्रकाश जी, श्री हरमेश जी और बूजी का उल्लेख क्यों हुआ, केरल में कौन था, लखनऊ में आज कौन सी बैठक है जानने के लिए सुनें