प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५१८ वां* सार -संक्षेप
हर अंग में ज्वाला धधकती धुंध है आकाश में
भारत भविष्यत् खोजता मृत, मौन जड़ मधुमास में
विश्वास शंकाशील मर्यादा विवश विक्षिप्त है
हा दैव शिव के देश की मेधा हुई अभिशप्त है ।
मत रो अरे इतिहास, भारत माँ न मेरी बाँझ है
यह है उदय बेला जिसे तू समझ बैठा साँझ है...
तो आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में जो उदय वेला में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है
लेखन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन है, जो न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है, अपितु आत्म-दर्शन एवं आत्म-परिष्कार की दिशा में भी एक सशक्त सेतु का कार्य करता है। जब कोई व्यक्ति अपने द्वारा रचित लेखन को पुनः पढ़ता है, तो वह केवल शब्दों का पठन नहीं करता, बल्कि अपने अन्तःकरण की गहराइयों में अवस्थित विचारों, अनुभूतियों एवं भावनाओं का अवगाहन करता है।
लेखन के माध्यम से आत्मा का साक्षात्कार सम्भव होता है क्योंकि आत्मा ही परमात्मा का अंश है इस प्रकार लेखन, एक प्रकार से, दिव्य तत्त्व के स्पर्श का अवसर प्रदान करता है। यह प्रक्रिया आत्ममंथन को अत्यन्त सहज बना देती है, जिससे व्यक्ति अपनी त्रुटियों को पहचानकर, आत्म-शुद्धि की ओर उन्मुख होता है।
लेखन से आत्म-विश्वास की भी अभिवृद्धि होती है क्योंकि यह स्वयं के विचारों को सुव्यवस्थित करने, उन्हें स्पष्टता से प्रस्तुत करने और जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को दृढ़ता से व्यक्त करने का अभ्यास देता है। लेखन हमें संबल प्रदान करने वाला एक योग है l हम प्रतिदिन लेखन अवश्य करें क्योंकि हमें जो जीवन सोद्देश्य प्राप्त हुआ है उसे हम सार्थक कर सकें
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपने कर्तव्यकर्म का परिपालन प्रामाणिकता से करें वर्तमान में स्थिति अत्यन्त गम्भीर है ऐसे में हम अपने लक्ष्य को विस्मृत न करते हुए गम्भीर स्थिति के निराकरण के लिए उपाय करते हुए राष्ट्र के लिए जाग्रत पुरोहित की भूमिका निभाएं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया मोहन जी, श्री बालेश्वर जी, श्री चन्द्र पाल जी, श्री चन्द्र प्रकाश जी का उल्लेख क्यों किया, युग पुरुष पुस्तक की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें